Warning: session_start(): open(/tmp/sess_ac1943cba690060334162de63304a0b7, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/article_details.php on line 2

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/article_details.php on line 2
 वो मजदूर कहलाता है | Hindi Poem by Radha Saxena
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।

वो मजदूर कहलाता है (काव्य)

Print this

Author: राधा सक्सेना

जो हमारे लिए घर बनाता है
घर नहीं हमारे उस सपने को साकार करता है
जिसे हम खुली आंखों से देखते हैं
खुद झोपड़ी में बेफिक्र होकर सोता है,
और कोई सपना नहीं देखता।

जो हमारे लिए कपड़े बनाता है
कपड़े नहीं बल्कि हमारा सम्मान बनाता है
जिसमें हम खुद को ढकते हैं
खुद गंदे पुराने कपड़े पहनता है
और शर्मिंदगी महसूस नहीं करता।

जो हमारे लिए अनाज उगाता है
अनाज नहीं बल्कि वो अमृत उगाता है
जिसके बिना हम जिंदा नहीं रह सकते
खुद रूखी सूखी खाकर गुजारा करता है
फिर भी तृप्ति महसूस करता है।

जो हमारे लिए खिलौने बनाता है
खिलौने नहीं बल्कि वो खजाना बनाता है
जिसमें हम अपने बच्चों की खुशी देखते हैं
उसके खुद का बच्चा खेलने की उम्र में,
बाजारों में खिलौने बेचता है।

जो हमारी हर जरूरत को परखता है
उसकी व्यवस्था की आधारशिला रखता है
जो दिन रात मेहनत करता है
और हमारे लिए सुख का सामान बनाता है
जिसमें उसका पसीना शामिल होता है
कभी थकान नहीं महसूस करता है।
वो मजदूर कहलाता है।।

- राधा सक्सेना, इंदौर, भारत
  ई-मेल: suskha22sep@gmail.com

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश