अहिंदी भाषा-भाषी प्रांतों के लोग भी सरलता से टूटी-फूटी हिंदी बोलकर अपना काम चला लेते हैं। - अनंतशयनम् आयंगार।

सयाना (काव्य)

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Author: गोलोक विहारी राय

आदि काल से बस यूँ ही, चला आ रहा खेल।
बनने और बनाने की, चलती रेलम पेल।।
चलती रेलम पेल, दाँव जब जिसका चलता।
कहते उसको बुद्धिमान, वही सभी को छलता।।
कहे भोला भुलक्कड़, जिस पर हँसे जमाना।
कोई मूरख कहता उसको, कहता कोई दीवाना।।

मूर्ख यहाँ कोई नहीं, बनते सब होशियार।
एक दूसरे से अधिक, अकल सभी में यार।।
अकल सभी में यार, एक से एक सयाना।
बात बात में सब करे, एक से एक बहाना।।
कहे भोला भुल्लकड़, प्रभु बस इतना बतला देना।
मूर्ख कहे यदि दुनिया, खुद पर हँसना सिखला देना।।

- गोलोक विहारी राय

 

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