हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
सियार का बदला (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

एक बार की बात है। एक जंगल में एक सियार रहता था। वह भूख से परेशान हो कर गांव में पहुंचा। उस ने वहां दड़बे में एक मुर्गी देखी। उसे मुंह में दबा कर भाग लिया और एक पेड़ की छाया में जाकर उसे खाने लगा।

वहीं पेड़ पर क्रौ कौआ बैठा हुआ था। उसे देख कर क्रौ के मुंह में पानी आ गया, "ओह । ताजी मुर्गी । चलो बचीखुची हमें भी खाने को मिलेगी," सोचते हुए क्रौ 'कांव-कांव' करने लगा।


उस की आवाज सुन कर बहुत सारे कौवे आ गए। फिर सभी कांवकांव करने लगे। उन की 'कॉव-कांव' सुन कर उधर से गुजर रहा एक ग्रामीण रुक गया। 'जरूर वहां कुछ है', सोचकर वह पेड़ के नीचे आया, जहां सियार आराम से ताजी मुर्गी मार कर खा रहा था।


"ओह ! यह तो हमारे गांव की मुर्गी मार कर खा रहा है", कहते हुए उस ने अन्य ग्रामीणों को आवाज दी। इस से कई ग्रामीण एकत्र हो गए। तब सब ने मारपीट कर सियार को वहां से भगा दिया।

सियार के जाते ही क्रौ अपने साथियों के साथ मुर्गी की दावत उड़ाने लगा।

यह देख कर सियार को बहुत गुस्सा आया। क्रौ की वजह से उस का स्वादिष्ट खाना छूट गया था, जबकि क्रौ अपने साथियों के साथ उस की लाई हुई स्वादिष्ट मुर्गी खा रहा था। सियार ने क्रौ और उस के अन्य साथियों से बदला लेने का मन बना लिया। 'इसे सबक सिखाना पड़ेगा।' सियार को बदला लेने का मौका भी जल्दी ही मिल गया।

हुआ यूं कि एक बार जम कर पानी बरसा। कौओं के घ़सले पानी से भीग गए। वे ठण्ड से कांपने लगे। तब सियार ने क्रौ को देख कर कहा, "क्रौ भाई ! तुम चाहो तो बरसात से बचने के लिए मेरी गुफा में रह सकते हो।"

"अरे नहीं सियार भाई । इस से तुम्हें परेशानी होगी।" क्रों ने कहा।

"काहे की परेशानी! मेरी गुफा बहुत बड़ी है। तुम सब आराम से रह सकते हो।"

क्रौ ठण्ड से काँप रहा था व उसके साथी भी परेशान हो चुके थे। उन्होंने सियार की बात मान ली। सभी 30 कौए, क्रौ के साथ सियार की गुफा में रहने लगे।


मगर, एक रात अचानक 10 कौए कम पड़ गए। तब क्रौ ने सियार से पूछा, "सियार भाई । आज हमारे 10 साथी कौए नजर नहीं आ रहे हैं ? क्या बात है ?"

इस पर सियार ने कहा, "वे रात को यह गुफा छोड़ कर चले गए।"


"मगर क्यों? उन्होंने तो हमें नहीं बताया ?" क्रौ आश्यर्चकित था।

"उनका कहना था कि हम अपने काम स्वयं कर सकते हैं। आप पर बोझ नहीं बनना चाहते हैं। इसलिए वे रात को ही कहीं चले गए।" सियार ने वास्तविकता छिपाते हुए बताया। सियार तो पिछली रात ही उन दस कौओं को मारकर खा चुका था।


क्रौ व अन्य कौए सियार के झांसे में आ गए। कुछ दिन बाद फिर 10 कौए कम हो गए।

"इस बार भी 10 कौए कम पड़ गए है ?" क्रौ ने सियार से पूछा तो वह बोला, "रात को 10 कौए मेरे पास आए थे। वे बोल रहे थे कि हमें अपने 10 साथियों की बहुत याद आ रही है। हम उन्हें वापस लेने जा रहे है। यह कह कर 10 कौए रात को ही उन्हें लेने चले गए।"


क्रौ को सियार की मासूमियत से कही गई यह बात ठीक लगी। वह उस की बात मान गया, जबकि वास्तविकता यह थी कि चालाक सियार फिर से रात को 10 कौए मार कर चुपचाप खा चुका था।

अगली रात को सब कौए चुपचाप सो रहे थे। चालाक सियार ने उसी रात शेष बचे 10 कौओं को भी मार खाया।


इस तरह चालाक सियार ने चतुर कौओं से अपने अपमान का बदला ले लिया था।

[ उड़ीसा व पश्चिम बंगाल की 'हो' जनजाति की लोक-कथा पर आधारित। इस जनजाति की बोली 'कोलारियन' भाषा समूह के अंतर्गत आती है।]

- ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश
सशि, पोस्ट ऑफिस के पास रतनगढ़-458226 (नीमच) मप्र
ई-मेल: opkshatriya@gmail.com
मोबाइल: 9424079675

 

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