Warning: session_start(): open(/tmp/sess_e7f8b6dcb83ee3460ada6e525442a116, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_article_details.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/child_article_details.php on line 1
 नवल हर्षमय नवल वर्ष यह  - सुमित्रानंदन पंत की कविता | Naval Harshamay Naval Varsh Yah by Sumitranandan Pant
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।
नवल हर्षमय नवल वर्ष यह (काव्य)  Click to print this content  
Author:सुमित्रानंदन पंत

नवल हर्षमय नवल वर्ष यह,
कल की चिन्ता भूलो क्षण भर;
लाला के रँग की हाला भर
प्याला मदिर धरो अधरों पर!
फेन-वलय मृदु बाँह पुलकमय
स्वप्न पाश सी रहे कंठ में,
निष्ठुर गगन हमें जितने क्षण
प्रेयसि, जीवित धरे दया कर!

- सुमित्रानंदन पंत

Previous Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश