सितम्बर 10, 2015
भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी, मध्य प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री भाई शिवराज सिंह चौहानजी, मध्य प्रदेश के राज्यपाल आदरणीय श्री राम नरेश यादवजी, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल आदरणीय श्री केशरीनाथ त्रिपाठीजी, गोआ की राज्यपाल आदरणीया बहन मृदुला सिन्हाजी, झारखण्ड के मुख्यमंत्री भाई रघुवर दासजी, केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में मेरे दो वरिष्ठ सहयोगी भाई रविशंकर प्रसादजी और डॉ0 हषवर्द्धनजी, मॉरीशस से विशेष रूप से पधारी वहॉं की शिक्षा मंत्री बहन लीला देवी दुक्खनजी, हमारे गृह राज्य मंत्री श्री किरण रिजीजू जी और मेरे अपने राज्य के और मेरे अपने विभाग के राज्यमंत्री जनरल वी.के. सिंह जी, हमारे सम्मेलन की प्रबन्ध समिति के उपाध्यक्ष कुशल संगठक और अनुभवी आयोजक श्री अनिल माधव दवे जी, और मेरे अपने विभाग के सचिव श्री अनिल वर्माजी, इस सभागार में उपस्थित विद्वत्जन और हिन्दी प्रेमी बहनों और भाइयों, सबसे पहले तो मैं हृदय से प्रधानमंत्री जी का आभार व्यक्त करना चाहूँगी जिन्होंने यह सम्मेलन भोपाल में करने की सहमति दी और स्वयं पधारकर इसका शुभारम्भ करने की स्वीकृति दी। प्रधानमंत्रीजी, मेरे भोपाल का चयन करने के तीन कारण हैं। पहला, भोपाल हिन्दी के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित एक ऐसा राज्य है जो देश का हृदय प्रदेश है। दूसरा, भोपाल बहुत सफल और व्यापक आयोजन करने के लिए विख्यात है। मैं बिना संकोच और बिना लाग-लपेट के कहना चाहूँगी कि तीसरा कारण था मेरा स्वयं का मोह। क्योंकि मैं मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व लोकसभा में कर रही हूँ, इसलिए मैं इस लोभ का संवरण नहीं कर पाई कि यह कार्यक्रम केवल और केवल भोपाल में होना चाहिये। मित्रों, वैसे तो यह दसवां विश्व हिन्दी सम्मेलन है, लेकिन भारत में किया जा रहा यह तीसरा सम्मेलन है। पहला सम्मेलन 1975 में भारत में नागपुर में हुआ। उसके आठ वर्ष बाद फिर से तीसरा सम्मेलन भारत में नई दिल्ली में हुआ। लेकिन आज बत्तीस वर्षों बाद 2015 में यह दसवां विश्व हिन्दी सम्मेलन भोपाल में हो रहा है। जो बाकी के सात सम्मेलन थे, उनमें से दो सम्मेलन मॉरीशस में हुआ जहॉं से आज लीलाजी आई हुई हैं, एकत्रिनिदाद और टोबैगो में हुआ, एक सूरीनाम में हुआ, एक लन्दन में हुआ, एक न्यूयॉर्क में हुआ और एक दक्षिण अफ्रीका के जोहानसबर्ग में हुआ। जब नौवां विश्व हिन्दी सम्मेलन जोहानसबर्ग में हुआ, उसी समय यह तय कर दिया गया कि अगला यानी दसवां विश्व हिन्दी सम्मेलन भारत में होगा। प्रधानमंत्रीजी, यह सुखद संयोग है कि यह सम्मेलन आपके प्रधानमंत्रित्व के कार्यकाल में यहॉं हो रहा है। हमने पिछले नौ सम्मेलनों की तुलना में इस सम्मेलन का स्वरूप काफी बदला है। नौ के नौ सम्मेलन साहित्य-केन्द्रित रहे लेकिन हमने इस सम्मेलन को भाषा-केन्द्रित बनाया और मुझे लगता है कि जब विश्व हिन्दी सम्मेलन की स्थापना की गई थी, उसी समय कल्पना यही की गई होगी कि भाषा की उन्नति के लिए यह सम्मेलन स्थापित किया जा रहा है। यदि पहले सम्मेलन से भाषा की उन्नति के लिए यह सम्मेलन होता तो हम वहॉं नहीं खड़े होते जहॉं आज खड़े हैं। मुझे दुख से कहना पड़ता है कि आज हिन्दी भाषा के संवर्द्धन की अकेले चिन्ता नहीं करनी पड़ रही है, बल्कि उसके संरक्षण की भी चिन्ता करनी पड़ रही है। जिस तरह अंग्रेजी का उभार हिन्दी पर आ रहा है, उससे भाषा अपनी अस्मिता खोती जा रही है। इसलिए मैं प्रस्तावना में यह बताना चाहूँगी कि हमने भाषा को केन्द्र में रखकर विषय भी वे चुने, जहॉं विस्तार की सम्भावनायें हैं और जहॉं विस्तार होना चाहिये। हमने बारह विषय चुने हैं – विदेश नीति में हिन्दी, प्रशासन में हिन्दी, विज्ञान में हिन्दी, सूचना प्रौद्योगिकी में हिन्दी, न्यायालयों में हिन्दी और भारतीय भाषाएं, गिरमिटिया देशों में हिन्दी, अन्य भाषा भाषी राज्यों में हिन्दी, विदेशों में हिन्दी शिक्षण की सुविधा, भारत में विदेशियों के लिए हिन्दी अध्ययन की सुविधा, देश एवं विदेश में प्रकाशन की समस्याएं और समाधन तथा एक प्रमुख विषय चुना है ‘हिन्दी पत्रकारिता और हिन्दी संचार माध्यमों में भाषा की शुद्धता। ये बारह विषय हम लोगों ने चुने हैं और एक और बदलाव किया है। आज से पहले केवल सत्रों में चर्चा होती थी, रपट नहीं आती थी, रपट सालों बाद आती थी। चर्चा के प्रतिभागियों को यह पता भी नहीं चलता था कि जो कुछ उन्होंने कहा उसकी झलक रपट में आई या नहीं। इस बार हमने हर विषय को दो सत्र तो अवश्य दिये हैं, एक सत्र में चर्चा होगी, दूसरी में विषय का अनुमोदन होगा। केवल रपट प्रस्तुत नहीं की जायेगी। जिन प्रतिभागियों ने चर्चा में भाग लिया है, वे बाकायदा हाथ खड़ा करके अगर उसमें कोई संशोधन करना है तो संशोधन करके, घटा-बढ़ाकर जो जोड़ना है वह जोड़कर उसका अनुमोदन करेंगे। उस अनुमोदन की भी अनुशंसाएं बिन्दुवार समापन समारोह में इसी सभागार में पढ़ी जांएंगी। चार सत्रों की अध्यक्षता हमने केन्द्रीय मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों से करवाई ताकि उन्हें बाद में केवल रपट पढ़ने को न मिले, वे स्वयं चर्चा को सुनें और उनको क्या करना है यह हो। उन अनुशंसाओं के तुरन्त बाद से अनुपालन की कार्यवाही प्रारम्भ हो जायेगी। इसलिए आज मैं यहॉं खड़े होकर यह कह सकती हूँ कि यह सम्मेलन बहुत परिणाममूलक निकलेगा। प्रधानमंत्रीजी, आप जो अन्तराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी को महत्व दे रहे हैं, उसके लिए मैं आपकी हृदय से आभारी हूँ। मैं तो साक्षी होती हूँ उस दृश्य की, जब चीन के राष्ट्रपति चिनपिंग चीनी में बोलते हैं, राष्ट्रपति पुटिन रूसी में बोलते हैं, जापान के प्रधानमंत्री आबे जापानी में बोलते हैं, उस समय भारत के प्रधानमंत्री हिन्दी में धाराप्रवाह बोलकर हमें जिस तरह गौरवान्वित करते हैं, उससे पूरे भारत का माथा ऊँचा हो जाता है। मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि यह सम्मेलन आपके इन प्रयासों को और तेज गति देगा और अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर हिन्दी जो अधिकार आज तक प्राप्त नहीं कर सकी, इस सम्मेलन के बाद हिन्दी वह अधिकार अवश्य प्राप्त कर सकेगी, इसी विश्वास के साथ मैं अपनी प्रस्तावना समाप्त करती हूँ। बहुत बहुत धन्यवाद। (समाप्त) |