भारत न रह सकेगा हरगिज गुलामख़ाना। आज़ाद होगा, होगा, आता है वह जमाना।।
खूं खौलने लगा है हिन्दुस्तानियों का। कर देंगे ज़ालिमों का हम बन्द जुल्म ढाना।।
कौमी तिरंगे झंडे पर जां निसार अपनी। हिन्दू, मसीह, मुसलिम गाते हैं यह तराना।।
अब भेड़ और बकरी बन कर न हम रहेंगे। इस पस्त हिम्मती का होगा कहीं ठिकाना।।
परवाह अब किसे है जेल ओ दमन की प्यारों। इक खेल हो रहा है फाँसी पै झूल जाना।।
भारत वतन हमारा भारत के हम हैं बच्चे। भारत के वास्ते है मंजूर सिर कटाना।
-शहीद रामप्रसाद बिस्मिल |