चला जो आजादी का यह नहीं लौटेगा मुक्त प्रवाह, बीच में कैसी हो चट्टान मार्ग हम कर देंगे निर्बाध।
मृत्यु की महराबों से गूँज शहीदों की आती आवाज, रक्त से भीगे झण्डे फहर, उठाते हैं अपनी तलवार॥
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डायन है सरकार फिरंगी, चबा रही हैं दाँतों से, छीन-गरीबों के मुँह का हाँ, कौर दुरंगी घातों से ।
हरियाली में आग लगी है, नदी-नदी है खौल उठी, भीग सपूतों के लहू से अब धरती है बोल उठी॥
इस झूठे सौदागर का यह काला चोर-बाज़ार उठे, परदेशी का राज न हो बस, यही एक हुंकार उठे !
-रांगेय राघव
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