न इच्छा स्वर्ग जाने की नहीं रुपये कमाने की । नहीं है मौज करने की नहीं है नाम पाने की ।।
नहीं महलों में रहने की नहीं मोटर पै चलने की । नहीं है कर मिलाने की नहीं मिस्टर कहाने की ।।
न डिंग्री हाथ करने की, नहीं दासत्व पाने की । नहीं जंगल में जाकर ईश धूनी ही रमाने की ।।
फ़क़त इच्छा है ऐ माता! तेरी शुभ भक्ति करने की । तेरा ही नाम धरने की तेरा ही ध्यान करने की ।।
तेरे ही पैर पड़ने की तेरी आरत भगाने की । करोड़ों कष्ट भी सह कर शरण तव मातु आने की ।।
नहीं निज बंधुओ को अन्य टापू में पठाने की । नहीं निज पूर्वजों की कीर्ति को दाग़ी कराने की ।।
चाहे जिस भांति हो माता सुखद निज-राज्य पाने की । मरण उपरान्त भी माता! पुन: तव गोद आने की ।।
-लक्ष्मीनारायण मिश्र |