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 मुझको अपने बीते कल में | ग़ज़ल | Ghazal by Rohit Kumar Happy
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।
मुझको अपने बीते कल में | ग़ज़ल (काव्य)  Click to print this content  
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी'

मुझको अपने बीते कल में, कोई दिलचस्पी नहीं
मैं जहां रहता था अब वो घर नहीं, बस्ती नहीं।

सब यहां उदास, माथे पर लिए फिरते शिकन
अब किसी चेहरे पे दिखता नूर औ' मस्ती नहीं।

ना कोई अपना बना, ना हम किसी के बन सके
इस शहर में जैसे अपनी कुछ भी तो हस्ती नहीं।

तेरी तरह हो जाऊं क्यों, भी़ड़ में खो जाऊँ क्यों
शख्सियत 'रोहित' हमारी इतनी भी सस्ती नहीं।

- रोहित कुमार 'हैप्पी'

 

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