अक्कड़-बक्कड़ बंबे बोल सारी दुनिया होती गोल, बोल हुए मीठे जिनके उनकी है कीमत अनमोल ।
इत्ता - बित्ता, बित्ता कितना सागर में पानी है जितना, अव्वल आ जाएँ दरजे में हमें रोज पढ़ना है इतना ।
इत्तिल, बित्तिल-तित्तिल चोर बादल देख नाचता मोर, चोर पकड़ ही जाएगा अगर मचाएंगे हम शोर।
हरा समंदर, गोपी चंदर बैठा एक डाल पर बंदर, चंदर लगता सबको प्यारा रोज नहाता, जाता मंदिर।
-सूर्य कुमार पांडेय [अकक्ड़-बक्कड़, संदर्भ प्रकाशन, दिल्ली] |