मम्मी-पापा! रोको मत, बाहर जाते टोको मत। उम्र खेलने जाने की, दूध-दही, घी खाने की। खाया-पिया पचाने दो, हमें खेलने जाने दो।
अभी न पढ़ना आता है, खूब खेलना भाता है। बस्ता अभी न उठता है, कमरे में दम घुटता है। खुली हवा में जाने दो, लारा-लप्पा गाने दो।
कच्ची उम्र हमारी है, बस्ता कितना भारी है। नाहक बोझ बढ़ाते हो, हमको क्यों दहलाते हो। कुछ तो ताकत आने दो, हमें खेलने जाने दो।
-शिव मृदुल |