हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
नीटू का मॉस्क  (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:मंजरी शुक्ला

"चलो नीटू, सामने की दुकान से कुछ सब्ज़ी और फल लेकर आते है।" पापा ने नीटू को मॉस्क पकड़ाते हुए कहा।

"पर मैं मॉस्क लगाकर नहीं जाऊँगा।" नीटू ने मॉस्क से दूर हटते हुए कहा।

मम्मी बोली-"याद है कल ही डॉक्टर अंकल ने कहा था कि जब कोई भी कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति खाँसता या छींकता है तो हवा में उसके थूक के बारीक कण फ़ैल जाते है और फ़िर ये विषाणुयुक्त कण साँस के जरिये हमारे शरीर में भी प्रवेश कर सकते है।"

"पर मुझे मॉस्क लगाना बिलकुल नहीं अच्छा लगता है।" नीटू अपने पैर पटकते हुए बोला।

"क्यों, उसमें बुराई क्या है?" पापा ने पूछा।

"क्योंकि मैंने पहले कभी मॉस्क नहीं लगाया है और इसलिए मेरी आदत नहीं है।" नीटू रुआँसा होते बोला।

मम्मी ने तुरंत बात बदलते हुए प्यार से कहा-"अच्छा, तुम्हें याद है कि तीन दिन बाद तुम्हारा जन्मदिन आने वाला है और तुम पूरे पाँच साल के हो जाओगे।"

"हाँ, मैं बड़ा हो जाऊँगा और फ़िर मैं पुलिस ऑफ़िसर बनूँगा" कहते हुए नीटू ने अपनी प्लास्टिक की बंदूक उठा ली और कुर्सी पर पड़ी, सैनिक वाली टोपी पहन ली।

दादी हँसते हुए बोली-"पर पुलिस को ये तो पता होना चाहिए कि चोर कहाँ छिपा है।"

नीटू अपनी आँखें घुमाता हुआ बोला -"हाँ, दादी! आप बिलकुल सही कह रही हो। पर ये कैसे पता लगेगा कि चोर कहाँ छिपा हुआ है।"

"ये जानने के लिए हमें चोर पुलिस का खेल खेलना पड़ेगा।" दादी नीटू की टोपी को सीधा करते हुए बोली।

खेलने के नाम से ही नीटू ख़ुशी से नाच उठा और उछलते हुए बोला-"हाँ, मैं पुलिस बनूँगा और चोर को पकड़कर जेल में डाल दूँगा।"

"नहीं, नहीं, पुलिस मैं बनूँगी।" दादी ने मुस्कुराते हुए कहा।

"पर मुझे चोर नहीं बनना है।" नीटू ने ठुनकते हुए कहा।

"दादी ने फुसफुसाते हुए कहा-"पर जब तक तुम चोर नहीं बनोगे तुम्हें पता कैसे लगेगा कि चोर छुपने के लिए क्या क्या करता है।"

नीटू दादी की आधी बात समझा और आधी नहीं समझा पर वह तुरंत बोला-"हाँ, और फ़िर जब मैं पुलिस बनूँगा तो मुझे पहले से ही पता होगा कि चोर कैसे छुपता है।"

दादी हँसते हुए बोली-"चलो, अब जल्दी से मुझे अपनी बंदूक दो और तुम ये मॉस्क पहन लो।"

"नहीं, नहीं, मैं मॉस्क नहीं पहनूंगा।" नीटू ने मॉस्क को देखते हुए कहा।

"ठीक है, तो फ़िर मैं तो तुम्हें तुरंत पकड़ लूंगी और हमारा खेल भी खत्म हो जाएगा।"

"अरे दादी, अभी तो हमारा खेल शुरू भी नहीं हुआ और आप खत्म करने की बात कर रही हो।"

और ये कहते हुए नीटू ने गंदा सा मुँह बनाते हुए मॉस्क पहन लिया।

दादी ने तुरंत इधर उधर देखते हुए कहा-"ओफ़्फ़ो, अभी तो एक चोर दिखाई दिया था, कहाँ चला गया कहते हुए दादी इधर उधर देखने लगी।"

नीटू हँसता हुआ धीरे से बोला-"मैंने मॉस्क लगा लिया तो दादी भी मुझे पहचान ही नहीं पा रही।"

उधर दादी कभी सोफ़े के पीछे देख रही थी तो कभी अलमारी के पीछे।

नीटू कभी उनके पीछे चलता तो कभी दौड़ता हुआ आगे खड़ा हो जाता।

पर दादी सामने खड़े नीटू को ऐसे ढूँढ रही थी मानों नीटू अदृश्य हो गया हो।

और दोपहर तक नीटू और दादी का चोर पुलिस का खेल तब तक चलता रहा जब तक मम्मी ने दोनों को खाना खाने के लिए नहीं बुला लिया।

नीटू खाना कहते हुए बोला-"दादी, बड़ा मज़ा आया। हम कल भी खेलेंगे।"

दादी हँसते हुए बोली-"ज़रूर खेलेंगे पर तुम्हें तो मॉस्क लगाना पसंद नहीं है ना!"

"नहीं दादी, मॉस्क लगाना उतना भी बुरा नहीं है जितना मैं समझता था।" कहते हुए नीटू मुस्कुराया।

"तो फ़िर अब घर से बाहर जाते समय मॉस्क लगाओगे ना?" मम्मी ने पूछा।

"हाँ...बिलकुल लगाऊंगा ताकि कोरोना हमें पहचान नहीं पाए और हम सुरक्षित रहे।"

"अरे वाह, हमारा नीटू तो बहुत समझदार हो गया।" पापा ने खुश होते हुए कहा।

"हाँ, पापा, मैं तो बहुत समझदार हूँ बस किसी को पता नहीं चल पाता।" नीटू ने मासूमियत से कहा।

पापा और मम्मी ने दादी की तरफ़ देखा और तीनों ठहाका मारकर हँस दिए।

-डॉ. मंजरी शुक्ला, भारत
 ईमेल : manjarishukla28@gmail.com

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