जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।
हिंदी साहित्यकार कृष्ण बलदेव वैद नहीं रहे (विविध)  Click to print this content  
Author:भारत-दर्शन समाचार

Krishna Baldev Vaid

06 फरवरी (भारत): हिंदी के प्रख्यात लेखक, नाटककार एवं उपन्यासकार कृष्ण बलदेव वैद का गुरुवार को अमेरिका के न्यूयार्क में देहांत हो गया। वे 92 वर्ष के थे। वे इन दिनों अपनी बेटियों के साथ अमेरिका में रह रहे थे।

कृष्ण बलदेव वैद का जन्म 27 जुलाई 1927 को पंजाब में हुआ था।आप निर्मल वर्मा के समकालीन थे। आपने हाॅवर्ड विश्विद्यालय से अंग्रेजी में पीएचडी करने के बाद न्यूयार्क स्टेट यूनिवर्सिटी में अध्यापन किया और वहीं बस गए। बाद में आप भारत लौट आये और दिल्ली में रहे। कृष्ण बलदेव वैद ने 'उसका बचपन', 'बिमल उर्फ़ जायें तो जायें कहां', 'तसरीन', 'दूसरा न कोई', 'दर्द ला दवा', 'गुज़रा हुआ ज़माना', 'काला कोलाज', 'नर नारी', 'माया लोक', 'एक नौकरानी की डायरी' जैसे उपन्यासों से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया।

आपके कहानी-संग्रहों में - 'बीच का दरवाज़ा', 'मेरा दुश्मन', 'दूसरे किनारे से', 'लापता', 'उसके बयान', 'मेरी प्रिय कहानियां', 'वह और मैं', 'ख़ामोशी', 'अलाप', 'प्रतिनिधि कहानियां', 'लीला', 'चर्चित कहानियां', 'पिता की परछाइयां', 'दस प्रतिनिधि कहानियां', 'बोधिसत्त्व की बीवी', 'बदचलन बीवियों का द्वीप', 'संपूर्ण कहानियां', 'मेरा दुश्मन', 'रात की सैर' इत्यादि सम्मिलित हैं।

'वैद' कथा साहित्य में नए प्रयोग के लिए जाने जाते थे। 2007 में कृष्ण बलदेव वैद के 80 वर्षीय होने पर अशोक वाजपेयी और उदयन वाजपेयी ने उनकी प्रतिनिधि रचनाओं का एक संचयन प्रकाशित किया था। इसमें ऐसी सामग्री संकलित की गई जिसमें कृष्ण बलदेव वैद की दृष्टि, शैलियों और कथ्यों की बहुलता के वितान से परिचय होता है।

आपका पहला और छोटा उपन्यास, 'उसका बचपन' उत्कृष्ट श्रेणी में आता है। आपका नाटक, 'भूख की आग' भी बहुत चर्चित रहा है।

हिंदी साहित्य के हस्ताक्षर कृष्ण बलदेव वैद हिंदी के आधुनिक गद्य-साहित्य में सब से महत्वपूर्ण लेखकों में से एक गिने जाते हैं।

[भारत-दर्शन समाचार] 

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