राजभाषा तेरे लिए ये जान भी कुर्बान है। मात्र मेरी ही नहीं तू हम सभी की शान है।।
भाषाओं में सरल भाषा, वाणी में भी मिठास है। प्रेम में सब को डुबोती, यह बात तेरी खास है।।
प्रेम में जो डूबा ना तेरे, वो बडा नादान है। मात्र मेरी ही नहीं तू, हम सभी की शान है।।
एकता के सूत्र में, प्रेमी जनों को बाँध कर। बढ रही है तू निरन्तर, व्याधियों को लाँघ कर ।।
प्रेम से बढती है तू, तेरा यही ईमान है। मात्र मेरी ही नहीं तू, हम सभी की शान है।।
कुण्ठित मनों के लोग कुछ तुझ से घृणा करने लगे। प्रेम से चूमा जो तूने, वो भी गले से आ लगी।।
कौन है इस देश में, तुझ से जो अनजान है। मात्र मेरी ही नहीं तू, हम सभी की शान है।।
'त्याग' पाया 'हरीश' से 'सदासुख' का तुझको सुख मिला। 'लल्लू' का प्रेम पालन मिला, 'इंशा' का तुझ को मुख मिला।।
नलिन, हजारी, नगेन्द्र ने तेरा बढाया मान है। मात्र मेरी ही नहीं तू, हम सभी की शान है।।
'चन्द्र' की वाणी है तू, 'जगंनिक' का तू है जागरण। 'सूर', 'तुलसी', 'जायसी', 'कबीरा' का तू है आचरण।। रूप 'सांवरिया' लिये, तुझ को मिला रसखान है। मात्र मेरी ही नहीं तू, हम सभी की शान है।।
'सेनापति' के छन्द में, तेरी मधुरता झाँकती। कान्हा की मीठी तान पर 'मीरा' थी कैसी नाचती।।
पुत्र तेरे नन्द औ' भूषण, केशव, देव, सुजान हैं। मात्र मेरी ही नहीं तू, हम सभी की शान है।।
'प्रसाद' का प्रसाद है तू, 'निराला' की तू झंकार है। 'मैथिली' का स्वर है तू, 'दिनकर' की तू हुँकार है।।
'महादेवी' सी बेटी तेरी, 'प्रेमचंद' सा पुत्र महान है। मात्र मेरी ही नहीं तू, हम सभी की शान है।।
'पंत' की 'गुँजन' तू ही, 'बच्चन' की 'मधुशाला' तू ही। 'शुक्ल' की 'चिन्तामणी' तू, 'मीरा' का प्याला तू ही।।
तू पनपती ही रहे बस, ये ही मेरा अरमान है। मात्र मेरी ही नहीं तू, हम सभी की शान है।।
छछिया भरी ही छाछ पर, कृष्ण को नचाती गोपियाँ। वृन्दावन की वादियों में, गा-गा कर सुंदर लोरियाँ।।
अपनी जुबां में बाद में, गाता फिरा रसखान है। मात्र मेरी ही नहीं तू, .. हम सभी की शान है।।
'तुलसी' की ऊँची उडान तू, 'सूर' के मन की तू गहराई है। 'जायसी' की 'पदमावती' तू, 'विद्यापति' की तू 'पुरवाई' है।।
तुझ को पा कर आज गर्वित, यह भारत देश महान है। मात्र मेरी ही नहीं तू, हम सभी की शान है।।
-- जयप्रकाश शर्मा, नागपुर, भारत ।
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