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 गन्ने के खेतों में हिंदी के आखर | गिरमिटियों पर हिंदी कविता
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।
गन्ने के खेतों में हिंदी के आखर  (काव्य)  Click to print this content  
Author:राकेश पाण्डेय

उन गिरमिटियों की श्रमसाधना को समर्पित जिनके कारण आज हिंदी विश्वभाषा बनी।

गन्ने के खेतों में हिंदी के आखर
बन गए राखी-रोली चन्दन
माथ लगाते गिरमिटिया
कंठ-कंठ करते वंदन

गन्ने के खेतों में हिंदी के आखर
बन गए राखी-रोली चन्दन

हिंदी हुई मात-भ्रात सबकी
जन से जन का मेल कराए
द्वेष क्लेश निर्मूल करे
सबको मिलता स्नेह स्पंदन
गन्ने के खेतों में हिंदी के आखर
बन गए राखी-रोली चन्दन

कोड़ों की भाषा का स्वर हैं
लाल पसीने का सागर
हिंदी बनी आत्मबल सबका
ईख ईख हो जाती नंदन

गन्ने के खेतों में हिंदी के आखर
बन गए राखी-रोली चन्दन

धन्य हो गाँधी,धन्य रामगुलाम
हिंदी का ध्वज तुमने थामा।
विश्व हिंदी हुई अविरल अविराम
हिंदी-हिंदी का है नभ में गुंजन

गन्ने के खेतों में हिंदी के आखर
बन गए राखी-रोली चन्दन

- राकेश पाण्डेय
संपादक, प्रवासी संसार

 

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