जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
अल्लाह का शुक्र (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:भारत-दर्शन संकलन

एक बार शेखचिल्ली की माँ ने कपडे धोकर सूखाने के लिए बाहर डाल दिए। फिर वह घर के कामों में व्यस्त हो गयी। शेखचिल्ली आराम से चारपाई पर लेटे-लेटे सपनों की दुनिया में खोया था।

अचानक आँधी आ गई और थोड़ी ही देर में उसने विकराल रूप धारण कर लिया। धूल का इतना बड़ा बवंडर उठा कि कुछ भी देखना मुहाल हो गया। आस -पड़ोस के लोग अपने-अपने घरों के भीतर चले गए। शेखचिल्ली और उसकी माँ भी अपने घर के भीतर चले गए।

अचानक शेखचिल्ली की माँ को याद आया कि सभी कपड़े तो सूखने के लिए बाहर डाले हुए हैं। उसने खिड़की से देखा तो सारे कपड़े इधर-उधर उड़ रहे थे। जब आँधी थोड़ी शांत हुई तो वह अपने कपड़ों को ढूंढने बाहर निकली। गाँव के अन्य लोग भी अपने-अपने सामान ढूंढ रहे थे। कुछ देर इधर-उधर ढूंढने के बाद शेखचिल्ली की माँ को अपने सभी कपड़े मिल गए। घर के भीतर आने पर, कपड़ों को समेटते हुए चारपाई पर बैठे शेखचिल्ली को देखकर उदासी से बोली, "बेटा! अंधड़ में उड़े सभी कपड़े तो मिल गए सिर्फ तुम्हारा पायजामा नहीं मिला। ना जाने कैसे उड़कर उस कुएँ में जा गिरा है। जाओ जाकर अपने पायजामे को उस कुएँ से निकालने की कोशिश करके देख लो।"

"अरी माँ! इसमें उदास होने वाली कौन सी बात है?" शेखचिल्ली बोला, "यह तो बहुत खुशी की बात है, इसके लिए तो आपको अल्लाह का शुक्रगुजार होना चाहिए।"

शेखचिल्ली की माँ को कुछ समझ में न आया। वह आश्चर्य से बोली, "बेटा, इसमें अल्लाह का शुक्रगुजार होने जैसी कौन सी बात है?"

"आप समझी नहीं माँ! यदि वह पायजामा मैंने पहना होता तो आँधी मुझे भी उड़ाकर कुएँ में गिरा देता। अबतक तो मैं कुएं में डूब भी गया होता और अल्लाह को प्यारा हो गया होता। इसलिए अल्लाह का शुक्र करना चाहिए।"

[भारत-दर्शन संकलन]

 

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