साहित्य का स्रोत जनता का जीवन है। - गणेशशंकर विद्यार्थी।

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हिंदी में न्यूजीलैंड का माओरी साहित्य - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

न्यूजीलैंड में तीन भाषाएं आधिकारिक रूप से मान्य हैं-- अंग्रेजी, माओरी और सांकेतिक भाषा। हिन्दी न्यूज़ीलैंड में सर्वाधिक बोली जाने वाली पाँचवीं भाषा है।

 
हिंदी पत्रकारिता दिवस   - भारत-दर्शन समाचार

30 मई को हिन्दी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। हिन्दी का पहला समाचार पत्र 'उदंत मार्तंड' इसी दिन प्रकाशित हुआ था। 

 
नारद की कल्याणकारी पत्रकारिता  - लोकेन्द्र सिंह

पत्रकारिता की तीन प्रमुख भूमिकाएं हैं- सूचना देना, शिक्षित करना और मनोरंजन करना। महात्मा गांधी ने हिन्द स्वराज में पत्रकारिता की इन तीनों भूमिकाओं को और अधिक विस्तार दिया है- लोगों की भावनाएं जानना और उन्हें जाहिर करना, लोगों में जरूरी भावनाएं पैदा करना, यदि लोगों में दोष है तो किसी भी कीमत पर बेधड़क होकर उनको दिखाना। भारतीय परम्पराओं में भरोसा करने वाले विद्वान मानते हैं कि देवर्षि नारद की पत्रकारिता ऐसी ही थी। देवर्षि नारद सम्पूर्ण और आदर्श पत्रकारिता के संवाहक थे। वे महज सूचनाएं देने का ही कार्य नहीं बल्कि सार्थक संवाद का सृजन करते थे। देवताओं, दानवों और मनुष्यों, सबकी भावनाएं जानने का उपक्रम किया करते थे। जिन भावनाओं से लोकमंगल होता हो, ऐसी ही भावनाओं को जगजाहिर किया करते थे। इससे भी आगे बढ़कर देवर्षि नारद घोर उदासीन वातावरण में भी लोगों को सद्कार्य के लिए उत्प्रेरित करने वाली भावनाएं जागृत करने का अनूठा कार्य किया करते थे। दादा माखनलाल चतुर्वेदी के उपन्यास 'कृष्णार्जुन युद्ध' को पढऩे पर ज्ञात होता है कि किसी निर्दोष के खिलाफ अन्याय हो रहा हो तो फिर वे अपने आराध्य भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण और उनके प्रिय अर्जुन के बीच भी युद्ध की स्थिति निर्मित कराने से नहीं चूकते। उनके इस प्रयास से एक निर्दोष यक्ष के प्राण बच गए। यानी पत्रकारिता के सबसे बड़े धर्म और साहसिक कार्य, किसी भी कीमत पर समाज को सच से रू-ब-रू कराने से वे भी पीछे नहीं हटते थे। सच का साथ उन्होंने अपने आराध्य के विरुद्ध जाकर भी दिया। यही तो है सच्ची पत्रकारिता, निष्पक्ष पत्रकारिता, किसी के दबाव या प्रभाव में न आकर अपनी बात कहना। मनोरंजन उद्योग ने भले ही फिल्मों और नाटकों के माध्यम से उन्हें विदूषक के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया हो लेकिन देवर्षि नारद के चरित्र का बारीकी से अध्ययन किया जाए तो ज्ञात होता है कि उनका प्रत्येक संवाद लोक कल्याण के लिए था। मूर्ख उन्हें कलहप्रिय कह सकते हैं। लेकिन, नारद तो धर्माचरण की स्थापना के लिए सभी लोकों में विचरण करते थे। उनसे जुड़े सभी प्रसंगों के अंत में शांति, सत्य और धर्म की स्थापना का जिक्र आता है। स्वयं के सुख और आनंद के लिए वे सूचनाओं का आदान-प्रदान नहीं करते थे, बल्कि वे तो प्राणी-मात्र के आनंद का ध्यान रखते थे।

 
सत्यम् शिवम् सुन्दरम् की अवधारणा एक विशुद्ध भारतीय प्रत्यय - विजय रंजन

‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ हमारे यहाँ अप्रतिम सांस्कृतिक सांस्कारिक महत्त्व का अति विशिष्ट प्रत्यय है। वास्तव में सिद्धान्ततः और व्यवहार्यतः समवेत में औ...र स्फुट एकल रूप में भी यह एकल सामासिक शब्द-बन्ध भारतीय दर्शन जगत्: अध्यात्म जगत् , नैयायिक जगत्, साहित्य जगत्, कला जगत् आदि प्रायः सभी मानसिक-वैचारिक ज्ञानानुशासनों में व्याप्त है। सर्वस्वीकृत आदर्श जीवन-मूल्यों के रूप में हमारे बौद्धिक जगत् के विभिन्न अनुशासनों में भी सुस्थापित है यह। सम्प्रति ‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’ भारतीय दूरदर्शन का प्रतीक वाक्य है; परन्तु इस शब्द-बन्ध का महत्त्व इतने तक सीमित नहीं, अपितु अगाध है। 

 

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