साहित्य का स्रोत जनता का जीवन है। - गणेशशंकर विद्यार्थी।

गीत

गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें।

Article Under This Catagory

मैं हार गया हूं - भगवतीचरण वर्मा

निःसीम नापने चले, मुबारक हो तुम को;
पर दोस्त नाप लो तुम पहले अपनी सीमा।
ऐसा कोई उल्लास आज तक नहीं दिखा,
जो पड़ न गया हो यहां थकावट से धीमा।
अक्षय हो ऐसी आयु किसी को कहां मिली?
अव्यय हो ऐसी सांस किसी ने कब पाई?
मैं हार गया हूं खोज-खोजकर वह समर्थ,
जो नाप सका हो अपने दिल की गहराई।
आवाज नापने वाले, तुम सच-सच कह दो,
क्या नाप सके हो तुम धरती की मौन व्यथा?
जो हरित शस्य, निर्मल जल से भी मिट न सकी,
वह भूख-प्यास की लिखी रक्त से करुणा कथा।
ऐसी कब कोई चाह आह जो बन न गई?
ऐसा प्रकाश है कहां तिमिर में खो न गया?
मैं हार गया हूं खोज-खोजकर वह चेतन,
जो चलते-चलते बीच राह में सो न गया।
है ज्ञान समर्थ, महान--नहीं इनकार मुझे,
कल्पना-पंख पर लक्ष्यहीन लड़ने वाले।
पर देखो, मस्तक पर अभाव, असफलता के
हैं घिरे हुए दुर्भेद्य मेघ काले-वाले।
है प्रेम सत्य, भावना सत्य, अस्तित्व सत्य;
पर तुम में है भय, शंका का अविवेक भरा।
तुम अन्तरिक्ष की सुन्दरता पर मुग्ध-विसुध
तुम ने कुरूप कर डाली है रसवती धरा।

 
मैं पावन हूँ अपने आंसू के नीर से | गीत  - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali

तुम पार तरो गंगा-यमुना के तीर से 
मैं पावन हूँ अपने आंसू के नीर से

 
पीड़ा का वरदान - विष्णुदत्त 'विकल

क्यों जग के वाक्-प्रहारों से हम तज दें अपनी राह प्रिये! 

 
क्या होगा | गीत - कुसुम सिनहा

सपनों ने सन्यास लिया तो 
पगली आंखों का क्या होगा 
आंसू से भीगी अखियां भी 
सपनों में मुस्काने लगतीं। 

 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश