साहित्य का स्रोत जनता का जीवन है। - गणेशशंकर विद्यार्थी।

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सुन के ऐसी ही सी एक बात - शमशेर बहादुर सिंह

[हिन्दी साहित्यि हों में गुटबन्दी के एक घृणित रूप की प्रतिक्रिया]

 
राम, तुम्हारा नाम - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar

राम, तुम्हारा नाम कण्ठ में रहे, 
हृदय, जो कुछ भेजो, वह सहे, 
दुःख से त्राण नहीं माँगूँ।

 
'स-सार' संसार - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh

है असार संसार नहीं।
यदि उसमें है सार नहीं तो सार नहीं है कहीं। 
जहाँ ज्योति है परम दिव्य, दिव्यता दिखाई वहीं; 
क्या जगमगा नहीं ए बातें तारक-चय ने कहीं? 
दिखलाकर अगाधता विभु की निधि-धारायें बहीं; 
कब न छटायें उसकी सब छिति तल पर छिटकी रहीं? 
दिव्य दृष्टि सामने आवरण-भीतें सब दिन ढहीं; 
अधिक क्या कहें, मुक्ति मुक्त मानव ने पाई यहीं।

 
इस जग में - शम्भुनाथ शेष

इस जग में भेजा था तूने 
तो जग का जीवन भी देता! 
जैसा मुझको हृदय दिया था, 
कुछ वैसे साधन भी देता!

 
सुबह हो रही है - शील

सुबह हो रही है रहेगी न रात, 
सुनाता हूँ तुमको जमाने की बात। 
जो बिकते थे अब तक टकों पर गरीब, 
धरोहर में रखते थे अपना नसीब। 
जमाना जिन्हें कह रहा था गुलाम, 
वही हैं जमाने की पकड़े लगाम।

 
मैं हर मन्दिर के पट पर - सुमित्रा सिनहा

मैं हर मन्दिर के पट पर अर्घ्य चढ़ाती हूँ,
भगवान एक पर मेरा है!

 

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