नागरी प्रचार देश उन्नति का द्वार है। - गोपाललाल खत्री।

ग़ज़लें

ग़ज़ल क्या है? यह आलेख उनके लिये विशेष रूप से सहायक होगा जिनका ग़ज़ल से परिचय सिर्फ पढ़ने सुनने तक ही रहा है, इसकी विधा से नहीं। इस आधार आलेख में जो शब्‍द आपको नये लगें उनके लिये आप ई-मेल अथवा टिप्‍पणी के माध्‍यम से पृथक से प्रश्‍न कर सकते हैं लेकिन उचित होगा कि उसके पहले पूरा आलेख पढ़ लें; अधिकाँश उत्‍तर यहीं मिल जायेंगे। एक अच्‍छी परिपूर्ण ग़ज़ल कहने के लिये ग़ज़ल की कुछ आधार बातें समझना जरूरी है। जो संक्षिप्‍त में निम्‍नानुसार हैं: ग़ज़ल- एक पूर्ण ग़ज़ल में मत्‍ला, मक्‍ता और 5 से 11 शेर (बहुवचन अशआर) प्रचलन में ही हैं। यहॉं यह भी समझ लेना जरूरी है कि यदि किसी ग़ज़ल में सभी शेर एक ही विषय की निरंतरता रखते हों तो एक विशेष प्रकार की ग़ज़ल बनती है जिसे मुसल्‍सल ग़ज़ल कहते हैं हालॉंकि प्रचलन गैर-मुसल्‍सल ग़ज़ल का ही अधिक है जिसमें हर शेर स्‍वतंत्र विषय पर होता है। ग़ज़ल का एक वर्गीकरण और होता है मुरद्दफ़ या गैर मुरद्दफ़। जिस ग़ज़ल में रदीफ़ हो उसे मुरद्दफ़ ग़ज़ल कहते हैं अन्‍यथा गैर मुरद्दफ़।

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जूझना बुज़दिली से बेहतर है - विजय कुमार सिंघल

जूझना बुज़दिली से बेहतर है
सनसनी बेहिसी से बेहतर है

 
इसलिए तारीख ने... | ग़ज़ल - भवानी शंकर

इसलिए तारीख ने हमको कभी चाहा नहीं,
हम अकेले हैं हमारे पास चौराहा नहीं।

 
जो किसी का बुरा... - शिव ओम अंबर

जो किसी का बुरा नहीं होता
शख़्स ऐसा भला नहीं होता।

 
छाया के नहीं मिलते... - ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र

छाया के नहीं मिलते दो पल भी आजकल,
डरने लगे हैं तपिश से बादल भी आजकल।

 
रात दिन यूं चला - सूर्यभानु गुप्त

रात दिन यूं चला सिलसिला झूठ का,
बन गया दोस्तो! एक क़िला झूठ का।

 

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