Warning: session_start(): open(/tmp/sess_24bb7d572b6f5b995a50edf0abe995ac, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/lit_collect_details.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/lit_collect_details.php on line 1
 एक अदद घर | Hindi poem by Jaiprakash Manas
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।
एक अदद घर  (काव्य)    Print  
Author:जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas
 

जब
माँ
नींव की तरह बिछ जाती है
पिता
तने रहते हैं हरदम छत बनकर
भाई सभी
उठा लेते हैं स्तम्भों की मानिंद
बहन
हवा और अंजोर बटोर लेती है जैसे झरोखा
बहुएँ
मौसमी आघात से बचाने तब्दील हो जाती हैं दीवाल में
तब
नई पीढ़ी के बच्चे
खिलखिला उठते हैं आँगन-सा
आँगन में खिले किसी बारहमासी फूल-सा
तभी गमक-गमक उठता है
एक अदद घर
समूचे पड़ोस में
सारी गलियों में
सारे गाँव में
पूरी पृथ्वी में

- जयप्रकाश मानस
[साभार - अबोले के विरुद्ध]

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश