हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।
गिरमिटिया की पीर (काव्य)    Print  
Author:डॉ मृदुल कीर्ति
 

मैं पीड़ा की पर्ण कुटी में
पीर पुराण भरी गाथा हूँ
गिरमिटिया बन सात समंदर
पार गया वह व्यथा कथा हूँ।

आकर्षण कुछ पाने भर का
अतल जलधि के पार ले गया
सिक्के चंद पेट की ज्वाला
मेरा सुख संसार ले गया।
देश मेरा घर आँगन छूटा
अंतर्मन की व्यथा कथा हूँ
पीर पुराण भरी गाथा हूँ।

कलुषित पल था जब पग पहला
था जहाज़ में धरा गया
उस पल की कालिख से
था सारा जीवन रंगा गया।
अत्याचारों की बेड़ी से
रोम-रोम अब बंधा गुँथा हूँ
मैं पीड़ा की पर्ण कुटी में
पीर पुराण भरी गाथा हूँ।

-डॉ मृदुल कीर्ति
 ऑस्ट्रेलिया

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश