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 उलहना | Ulahna - Hindi poem by Padumlal Punnalal Bakshi
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।
उलहना (काव्य)    Print  
Author:पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी
 

कहो तो यह कैसी है रीति?
तुम विश्वम्भर हो, ऐसी,
तो होतो नहीं प्रतीति॥

जन्म लिया बन्दीगृह में
क्या और नहीं था धाम?
काला तुमको कितना प्रिय है,
रखा कृष्ण ही नाम॥

पुत्र कहाये तो ग्वाले के,
बने रहे गोपाल।
मणि मुक्ता सब छोड़,
गले में पहने क्या बनमाल॥

चोर बने मक्खन के,
दुनिया हँसती आज तमाम।
जहाँ देखता, वहाँ तुम्हारा
टेढ़ा, ही है काम॥

टेढ़ा मुकुट, खड़े रहना भी
टेढ़ा, टेढ़ी दृष्टि।
टेढ़ेपन की, नाथ, हुई है-
तुम से जग में सृष्टि॥

-पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शी

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