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 सूनापन रातों का - ग़ज़ल | Hindi Ghazal by Dr Bhawana Kunwar
भारत की सारी प्रांतीय भाषाओं का दर्जा समान है। - रविशंकर शुक्ल।
सूनापन रातों का | ग़ज़ल  (काव्य)    Print  
Author:भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया
 

सूनापन रातों का, और वो कसक पुरानी देता है
टूटे सपने,बिखरे आँसू,कई निशानी देता है

दिल के पन्ने इक-इक करके खुद-ब-खुद खुल जाते हैं
हर पन्ने पर लिखकर फिर वो,नई कहानी देता है

उसके आने से ही दिल में,मौसम कई बदलते हैं
सूखे बंज़र गलियारों में,रंग वो धानी देता है

आँखों में ऐसे ये डोरे,सुर्ख उतर कर आते हैं
जैसे मदिरा पैमाने में,दोस्त पुरानी देता है

उसकी यादों का जब मेला,साथ हमारे चलता है
टूटे-फूटे रस्तों पर भी,एक रवानी देता है

पास वो आके कुछ ही पल में,जाने की जब बात करे
झील सी गहरी आँखों में वो,बहता पानी देता है

-डॉ० भावना कुँअर
सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)

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