स्नेह-निर्झर बह गया है रेत ज्यों तन रह गया है।
आम की यह डाल जो सूखी दिखी, कह रही है--अब यहाँ पिक या शिखी, नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी नहीं जिसका अर्थ-- जीवन दह गया है।
दिये हैं मैने जगत को फूल-फल, किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल, पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल, ठाट जीवन का वही-- जो ढह गया है।
अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा, श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा। बह रही है हृदय पर केवल अमा, मै अलक्षित हूँ, यही कवि कह गया है।
-निराला
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