Warning: session_start(): open(/tmp/sess_334d83a9b6777245941852513566285b, O_RDWR) failed: No such file or directory (2) in /home/bharatdarshanco/public_html/lit_collect_details.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /tmp) in /home/bharatdarshanco/public_html/lit_collect_details.php on line 1
 सीते! मम् श्वास-सरित सीते | Rajgopal Singh
हिंदी जाननेवाला व्यक्ति देश के किसी कोने में जाकर अपना काम चला लेता है। - देवव्रत शास्त्री।
सीते! मम् श्वास-सरित सीते (काव्य)    Print  
Author:राजगोपाल सिंह
 

सीते! मम् श्वास-सरित सीते
रीता जीवन कैसे बीते

हमसे कैसा ये अनर्थ हुआ
किसलिये लड़ा था महायुद्ध
सारा श्रम जैसे व्यर्थ हुआ
पहले ही दुख क्या कम थे सहे
दो दिवस चैन से हम न रहे
सीते! मम् नेह-निमित सीते
रीता जीवन कैसे बीते

मर्यादाओं की देहरी पर
तज दिया तुम्हें, मेहंदी की जगह
अंगारे रखे हथेली पर
ख़ामोश रहे सब ॠषी-मुनी
सरयू भी उस पर ना उफ़नी
सीते! मम् प्रेम-तृषित सीते
रीता जीवन कैसे बीते

सबने हमको दोषी माना
कल दर्पण के सम्मुख हमने
निज बिम्ब लखा था अनजाना
हम दोषी-से, अपराधी-से
जीवित हैं एक समाधी-से
सीते! मम् मौन-व्यथित सीते
रीता जीवन कैसे बीते

हम काश कहीं धोबी होते
तज कर चल देते रामराज्य
जब जी चाहता हँसते-रोते
लेकिन हम तो महाराज रहे
सिंहासन की आवाज़ रहे
सीते! मम् हृदय-निहित सीते
रीता जीवन कैसे बीते

कम से कम तुम तो समझोगी
अपने राघव की निर्बलता
सब दें तुम दोष नहीं दोगी
जब वृक्ष उगाना होता है
इक भ्रूण दबाना होता है
सीते! मम् राम-चरित सीते
रीता जीवन कैसे बीते

- राजगोपाल सिंह

Back
 
 
Post Comment
 
  Captcha
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश