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रघुवीर सहाय | Raghuvir Sahay
रघुवीर सहाय (Raghuvir Sahay) का जन्म 9 दिसंबर, 1929 को लखनऊ में हुआ था। आपने कविता, कहानी, निबंध विधाओं में साहित्य-सृजन किया। रघुवीर सहाय ने आधुनिक दौर में जनसंबद्ध कविताओं के सूजन से हिंदी कविता को विकसित करने का महत्वपूर्ण प्रयास किया है। रघुवीर सहाय ने 1946 में लिखना शुरू किया। पहली बार उनकी कविता 'आदिम संगीत' शीर्षक से 'आजकल' के अगस्त 1947 अंक में प्रकाशित हुई थी। वैसे उनकी पहली कविता 'कामना' शीर्षक से लिखी गई थी जो शायद कहीं छपी नहीं। रघुवीर सहाय की उस समय की पुरानी डायरी पर इस कविता की रचनातिथि लिखी है--'7 अक्टूबर 1946' दी गई है। आगे के कई वर्ष रघुवीर सहाय ने काफी कविताएं लिखीं, जो बच्चन से प्रेरित होकर लिखी गई थीं। इसे उन्होंने दूसरा सप्तक में स्वयं स्वीकार किया है--'मैंने 1947 में एक बार बच्चन की कविताएं पढ़ीं और उनकी वेदना से मेरा कंठ फूटा।'
आगे के दिनों में उन्होंने अपनी कला के प्रति सजग होकर लिखने का प्रयास किया। यह सजगता कई स्तरों पर घटित हुई। कवि प्रगतिशील लेखक संघ के संपर्क में आया। धीरे धीरे जीवन के यथार्थ से निकट का परिचय होने लगा।
विधाएँ: कविता, कहानी, निबंध
मुख्य कृतियाँ
कविता संग्रह : सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो, हँसो, जल्दी हँसो, लोग भूल गए हैं, कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ, एक समय था
कहानी संग्रह : रास्ता इधर से है, जो आदमी हम बना रहे हैं
निबंध संग्रह : दिल्ली मेरा परदेस, लिखने का कारण, ऊबे हुए सुखी, वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे, भँवर, लहरें और तरंग, अर्थात, यथार्थ का अर्थ
अनुवाद : बरनमवन (शेक्सपियर के नाटक 'मैकबेथ' का अनुवाद), तीन हंगारी नाटक
सम्मान
कविता-संग्रह ‘लोग भूल गए हैं’ के लिए रघुवीर सहाय को 1984 के साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
निधन
30 दिसंबर, 1990 को दिल्ली में आपका देहांत हो गया।
Author's Collection
Total Number Of Record :5आपकी हँसी
निर्धन जनता का शोषण है
कह कर आप हँसे
लोकतंत्र का अंतिम क्षण है
कह कर आप हँसे
सबके सब हैं भ्रष्टाचारी
कह कर आप हँसे
चारों ओर बड़ी लाचारी
कह कर आप हँसे
कितने आप सुरक्षित होंगे
मैं सोचने लगा
सहसा मुझे अकेला पा कर
...
राष्ट्रगीत में भला कौन वह
राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है।
मख़मल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चंवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता है।
पूरब-पच्छिम से आते हैं
...
तोड़ो
तोड़ो तोड़ो तोड़ो
ये पत्थर ये चट्टानें
ये झूठे बंधन टूटें
तो धरती को हम जानें
सुनते हैं मिट्टी में रस है जिससे उगती दूब है
अपने मन के मैदानों पर व्यापी कैसी ऊब है
आधे आधे गाने
तोड़ो तोड़ो तोड़ो
...
हमारी हिंदी
हमारी हिंदी एक दुहाजू की नई बीवी है
बहुत बोलनेवाली बहुत खानेवाली बहुत सोनेवाली
गहने गढ़ाते जाओ
सर पर चढ़ाते जाओ
वह मुटाती जाए
पसीने से गंधाती जाए घर का माल मैके पहुँचाती जाए
पड़ोसिनों से जले
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नैतिकता का बोध
एक यात्री ने दूसरे से कहा, "भाई जरा हमको भी बैठने दो।"
दूसरे ने कहा, "नहीं! मैं आराम करूंगा। "पहला आदमी खड़ा रहा। उसे जगह नहीं मिली, पर वह चुपचाप रहा।
दूसरा आदमी बैठा रहा और देखता रहा। बड़ी देर तक वह उसे खड़े हुए देखता रहा। अचानक उसने उठकर जगह कर दी और कहा, "भाई अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता। आप यहां बैठ जाइए।"
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