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अन्तर दो यात्राओं का
अचानक देखता हूँ कि मेरी एक्सप्रेस गाड़ी जहाँ नहीं रुकनी थी वहाँ रुक गयी है। उधर से आने वाली मेल देर से चल रही है। उसे जाने देना होगा। कुछ ही देर बाद वह गाड़ी धड़ाधड़ दौड़ती हुई आयी और निकलती चली गयी लेकिन उसी अवधि में प्लेटफार्म के उस ओर आतंक और हताशा का सम्मिलित स्वर उठा। कुछ लोग इधर-उधर भागे फिर कोई बच्चा बिलख-बिलख कर रोने लगा।
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वह बच्चा थोड़े ही न था
वह एक लेखक था। उसके कमरे में दिन-रात बिजली जलती थी। एक दिन क्या हुआ कि बिजली रानी रूठ गई।
वह परेशान हो उठा। पाँच घंटे हो गए।
तभी ढाई वर्ष का शिशु उधर आ निकला। मस्तिष्क में एक विचार कौंध गया। बोला, “बेटे! बिजली रूठ गई है, जरा बुलाओ तो उसे।"
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मुक्ति
उसे रह-रहकर बीते दिनों की याद आ जाती थी। उसका गला भर आता था और आँखों से आँसू टपकने लगते थे। उसे मुक्त हुए अभी बहुत दिन नहीं बीते थे। उसकी मुक्ति किसी एक की मुक्ति नहीं, बल्कि सारी जाति की मुक्ति थी।
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अतिथि
एक शाम जब ब्रह्मानंद घर लौट रहे थे तो उनकी भेंट एक ऐसे व्यक्ति से हुई, जो बुरी तरह घबरा रहा था। उसके पास कुछ नहीं था और वह धर्मशाला का पता पूछ रहा था। उन्होंने उसे पास की एक धर्मशाला का पता दिया, लेकिन इस पर उसने पूछा, "क्या मैं वहाँ बिना बिस्तर के रह सकूँगा?"
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कर्तव्य-निष्ठा
अचानक आधी रात के समय कुछ लोगों ने विलियम कार्टराइट की मिल पर धावा बोल दिया। यह मशीन-युग के शुरुआत की बात है। उस काल में ऐसी घटनाएँ अकसर होती रहती थीं। मशीन ने शरीर-श्रम की जीविका छीन ली थी। यह धावा भी इसी कारण हुआ था। धावा करने वाले भयानक शस्त्रों से सज्जित थे। उधर मिलवाले भी असावधान नहीं थे। उन्होंने ईंट का जवाब पत्थर से दिया। दोनों ओर से अनेक व्यक्ति घायल हुए।
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