हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - राजेंद्रप्रसाद।

चित्रा मुद्गल

आधुनिक हिंदी कथा-साहित्य की बहुचर्चित लेखिका चित्रा मुद्गल का जन्म 10 दिसंबर 1944 को  चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा पैतृक गांव उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में स्थित निहाली खेड़ा और उच्च शिक्षा मुंबई विश्वविद्यालय में हुई।

चित्रा जी पहली कहानी स्त्री-पुरुष संबंधों पर थी जो 1955 में प्रकाशित हुई। उनके अब तक तेरह कहानी संग्रह, तीन उपन्यास, तीन बाल उपन्यास, चार बाल कथा संग्रह, पांच संपादित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। बहुचर्चित उपन्यास 'आवां' के लिए उन्हें व्यास सम्मान से नवाजा जा चुका है।

विधाएँ : उपन्यास, कहानी, नाटक, लघुकथा, लेख

मुख्य कृतियाँ

उपन्यास : एक जमीन अपनी, आवां, गिलिगडु
कहानी संग्रह : भूख, जहर ठहरा हुआ, लाक्षागृह, अपनी वापसी, इस हमाम में, ग्यारह लंबी कहानियाँ, जिनावर, लपटें, जगदंबा बाबू गाँव आ रहे हैं, मामला आगे बढ़ेगा अभी, केंचुल, आदि-अनादि
लघुकला संकलन : बयान
कथात्मक रिपोर्ताज : तहकानों मे बंद
लेख : बयार उनकी मुठ्ठी में
बाल उपन्यास : जीवक, माधवी कन्नगी, मणिमेख
नवसाक्षरों के लिए : जंगल
बालकथा संग्रह : दूर के ढोल, सूझ बूझ, देश-देश की लोक कथाएँ
नाट्य रूपांतर : पंच परमेश्वर तथा अन्य नाटक, सद्गगति तथा अन्य नाटक, बूढ़ी काकी तथा अन्य नाटक

सम्मान

व्यास सम्मान, इंदु शर्मा कथा सम्मान, साहित्य भूषण, वीर सिंह देव सम्मान


संपर्क

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मर्द

आधी रात में उठकर कहां गई थी?"

शराब में धुत्त पति बगल में आकर लेटी पत्नी पर गुर्राया।

"आंखों को कोहनी से ढांकते हुए पत्नी ने जवाब दिया, "पेशाब करने!"

"एतना देर कइसे लगा?"

"पानी पी-पीकर पेट भरेंगे तो पानी निकलने में टेम नहीं लगेगा?"

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भूख | कहानी

आहट सुन लक्ष्मा ने सूप से गरदन ऊपर उठाई। सावित्री अक्का झोंपड़ी के किवाड़ों से लगी भीतर झांकती दिखी। सूप फटकारना छोड़कर वह उठ खड़ी हुई, ‘‘आ, अंदर कू आ, अक्का।'' उसने साग्रह सावित्री को भीतर बुलाया। फिर झोंपड़ी के एक कोने से टिकी झिरझिरी चटाई कनस्तर के करीब बिछाते हुए उस पर बैठने का आग्रह करती स्वयं सूप के निकट पसर गई।

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रिश्ता

लगभग बाईस दिनों तक 'कोमा' में रहने के बाद जब उसे होश आया था तो जिस जीवनदायिनी को उसने अपने करीब, बहुत निकट पाया था, वे थी, मारथा मम्मी। अस्पताल के अन्य मरीजों के लिए सिस्टर मारथा। वह पुणे जा रहा था... खंडाला घाट की चढ़ाई पर अचानक वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया। ज़ख्मी अवस्था में नौ घंटे तक पड़े रहने के बाद एक यात्री ने अपनी गाड़ी से उसे सुसान अस्पताल में दाखिल करवाया...पूरे चार महीने बाद वह अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया। चलते समय वह मारथा मम्मी से लिपटकर बच्चे की तरह रोया। उन्होंने उसके माथे पर ममत्व के सैकड़ों चुंबन टांक दिए - 'गॉड ब्लेस यू माय चाइल्ड...।' डॉ कोठारी से उसने कहा भी था, ''डॉक्टर साहब ! आज अगर मैं इस अस्पताल से मैं जिंदा लौट रहा हूँ तो आपकी दवाइयों और इंजेक्शनों के बल पर नहीं, मारथा मम्मी के प्यार के बल पर। ''

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