जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

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माँ की याद बहुत आती है !

माँ की याद बहुत आती है !

जिसने मेरे सुख - दुख को ही ,
अपना सुख-दुख मान लिया था ।
मेरी खातिर जिस देवी ने,
बार - बार विषपान किया था ।
स्नेहमयी ममता की मूरत,
अक्सर मुझे रुला जाती है ।
माँ की याद बहुत आती है !

दिन तो प्यार भरे गुस्से में,
...

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