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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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विडम्बना - रीता कौशल | ऑस्ट्रेलिया |
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कुछ झूठ बोलना सीखो कविता! - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas |
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घर से निकले .... - निदा फ़ाज़ली |
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माँ | ग़ज़ल - निदा फ़ाज़ली |
बेसन की सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी माँ |
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सत्य की महिमा - कबीर की वाणी - कबीरदास | Kabirdas |
साँच बराबर तप नहीं, झूँठ बराबर पाप। |
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जूठे पत्ते - बालकृष्ण शर्मा नवीन | Balkrishan Sharma Navin |
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ठण्डी का बिगुल - सुशील कुमार वर्मा |
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हिन्दी भाषा - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh |
छ्प्पै |
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जनतंत्र का जन्म - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar |
सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी, |
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सबको लड़ने ही पड़े : दोहे - ज़हीर कुरैशी |
बहुत बुरों के बीच से, करना पड़ा चुनाव । |
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अभी ज़मीर में... | ग़ज़ल - जावेद अख़्तर |
अभी ज़मीर में थोड़ी सी जान बाक़ी है |
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कुछ लिखोगे - मिताली खोड़ियार |
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अहमद फ़राज़ की दो ग़ज़लें - अहमद फ़राज़ |
नज़र की धूप में साये घुले हैं शब की तरह |
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गिरिधर कविराय की कुंडलिया - गिरिधर कविराय |
गुन के गाहक सहस नर, बिनु गुन लहै न कोय |
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भई, भाषण दो ! भई, भाषण दो !! - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas |
यदि दर्द पेट में होता हो |
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अंतर्द्वंद्व - रीता कौशल | ऑस्ट्रेलिया |
ऐ मन! अंतर्द्वंद्व से परेशान क्यों है? |
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फैशन | हास्य कविता - कवि चोंच |
कोट, बूट, पतलून बिना सब शान हमारी जाती है, |
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आज के दोहे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
हमने चुप्पी तान ली, नहीं करेंगे जंग । |
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ये सारा जिस्म झुककर - दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar |
ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा |
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लोकतंत्र का ड्रामा देख - हलचल हरियाणवी |
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अब के सावन में - गोपालदास ‘नीरज’ |
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सुरेन्द्र शर्मा की हास्य कविताएं - सुरेन्द्र शर्मा |
राम बनने की प्रेरणा |
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वो था सुभाष, वो था सुभाष - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
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मोल करेगा क्या तू मेरा? - भगवद्दत ‘शिशु' |
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तुझे फिर किसका क्या डर है - भगवद्दत ‘शिशु' |
धूल और धन में जब समता, |
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दिन को भी इतना अंधेरा - ज़फ़र गोरखपुरी |
दिन को भी इतना अंधेरा है मिरे कमरे में |
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चेहरा जो किसी शख्स का... - नरोत्तम शर्मा |
चेहरा जो किसी शख्स का दिखता है सभी को |
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आगे गहन अँधेरा - नेमीचन्द्र जैन |
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