हास्य काव्य
भारतीय काव्य में रसों की संख्या नौ ही मानी गई है जिनमें से हास्य रस (Hasya Ras) प्रमुख रस है जैसे जिह्वा के आस्वाद के छह रस प्रसिद्ध हैं उसी प्रकार हृदय के आस्वाद के नौ रस प्रसिद्ध हैं - श्रृंगार रस (रति भाव), हास्य रस (हास), करुण रस (शोक), रौद्र रस (क्रोध), वीर रस (उत्साह), भयानक रस (भय), वीभत्स रस (घृणा, जुगुप्सा), अद्भुत रस (आश्चर्य), शांत रस (निर्वेद)।

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भई, भाषण दो ! भई, भाषण दो !! - गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas

यदि दर्द पेट में होता हो
या नन्हा-मुन्ना रोता हो
या आंखों की बीमारी हो
अथवा चढ़ रही तिजारी हो
तो नहीं डाक्टरों पर जाओ
वैद्यों से अरे न टकराओ
है सब रोगों की एक दवा--
भई, भाषण दो ! भई, भाषण दो !!
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फैशन | हास्य कविता - कवि चोंच

कोट, बूट, पतलून बिना सब शान हमारी जाती है,
हमने खाना सीखा बिस्कुट, रोटी नहीं सुहाती है ।
बिना घड़ी के जेब हमारी शोभा तनिक न पाती है,
नाक कटी है नकटाई से फिर भी लाज न आती है ।

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लोकतंत्र का ड्रामा देख  - हलचल हरियाणवी

विदुर से नीति नहीं
चाणक्य चरित्र कहां
कुर्सी पर जा बैठे हैं
शकुनी-से मामा देख
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क्या कीजे - प्रदीप चौबे

गरीबों का बहुत कम हो गया है वेट क्या कीजे 
अमीरों का निकलता आ रहा है पेट क्या कीजे
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सुरेन्द्र शर्मा की हास्य कविताएं  - सुरेन्द्र शर्मा

राम बनने की प्रेरणा
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महंगाई - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

जन-गण मन के देवता, अब तो आंखें खोल
महंगाई से हो गया, जीवन डांवाडोल
जीवन डाँवाडोल, ख़बर लो शीघ्र कृपालू
कलाकंद के भाव बिक रहे बैंगन-आलू
कहं 'काका' कवि, दूध-दही को तरसे बच्चे
आठ रुपये के किलो टमाटर, वह भी कच्चे
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