अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

आज के दोहे

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

हमने चुप्पी तान ली, नहीं करेंगे जंग ।
फिर भी दुनिया ना हटे, करती रहती तंग ।। 

तेरे मेरे रास्ते,  हैं बिल्कुल ही भिन्न ।
तू ‘जी-जी' करता रहे, मुझको इस से घिन्न ।।

हम को समझ न आ सके, इक-दूजे की बात ।
तुम व्यापारी हो भले,  मैं लेखक की जात ।।

ऑंखें अपनी मींच ले, मुँह से बोल न बोल ।
रिश्तों का अब तो यहाँ, यही बचा है मोल ।।

मैं तो मरजी जो करूँ, तुझे नहीं अधिकार ।
मुँह पर ताला डाल ले, बचा रहेगा प्यार ।।

‘रोहित' इस संसार में, किसको किससे प्रेम ।
हर कोई अब खेलता, अपनी-अपनी ‘गेम' ।।


- रोहित कुमार ‘हैप्पी'
  दिसंबर, २०१७

 

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