मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
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नया सबेरा - बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष

नए साल का, नया सबेरा,
जब, अम्बर से धरती पर उतरे,
तब, शान्ति, प्रेम की पंखुरियाँ,
धरती के कण-कण पर बिखरें।
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ठण्डी का बिगुल - सुशील कुमार वर्मा

शंख बजे ज्यों ही ठण्डी के,
मौसम ने यूं पलटा खाया,
शीतल हो उठा कण-कण धरती का,
कोहरे ने बिगुल बजाया!
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कुछ लिखोगे  - मिताली खोड़ियार

कुछ लिखोगे
तुमने कहा था न कुछ लिखोगे
लिखोगे धूप मेरे माथे पर
हथेलियों में बरसात का पानी लिखोगे
तुलिका में लिपटे रंगों की रंगीन तरलता लेकर
सूर्य की किरणों से पिघलते ध्रुवों के पानी में
लिखोगे मेरा नाम सांसों की गर्माहट से ?
बोलो न लिखोगे, क्या लिखोगे ?
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हिन्दी भाषा - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh

छ्प्पै
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कुछ झूठ बोलना सीखो कविता! - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas

कविते!
कुछ फरेब करना सिखाओ कुछ चुप रहना
वरना तुम्हारे कदमों पर चलनेवाला कवि मार दिया जाएगा खामखां
महत्वपूर्ण यह भी नहीं कि तुम उसे जीवन देती हो
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एक अदद घर  - जयप्रकाश मानस | Jaiprakash Manas

जब
माँ
नींव की तरह बिछ जाती है
पिता
तने रहते हैं हरदम छत बनकर
भाई सभी
उठा लेते हैं स्तम्भों की मानिंद
बहन
हवा और अंजोर बटोर लेती है जैसे झरोखा
बहुएँ
मौसमी आघात से बचाने तब्दील हो जाती हैं दीवाल में
तब
नई पीढ़ी के बच्चे
खिलखिला उठते हैं आँगन-सा
आँगन में खिले किसी बारहमासी फूल-सा
तभी गमक-गमक उठता है
एक अदद घर
समूचे पड़ोस में
सारी गलियों में
सारे गाँव में
पूरी पृथ्वी में
...

विडम्बना - रीता कौशल | ऑस्ट्रेलिया

मैंने जन्मा है तुझे अपने अंश से
संस्कारों की घुट्टी पिलाई है ।
जिया हमेशा दिन-रात तुझको
ममता की दौलत लुटाई है ।
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अंतर्द्वंद्व - रीता कौशल | ऑस्ट्रेलिया

ऐ मन! अंतर्द्वंद्व से परेशान क्यों है?
जिंदगी तो जिंदगी है, इससे शिकायत क्यों है?
...

वो था सुभाष, वो था सुभाष - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

वो भी तो ख़ुश रह सकता था
महलों और चौबारों में।
उसको लेकिन क्या लेना था,
तख्तों-ताज-मीनारों से!
         वो था सुभाष, वो था सुभाष!
...

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