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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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मोहन खेल रहे है होरी - शिवदीन राम |
मोहन खेल रहे हैं होरी । |
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इक अनजाने देश में - विजय कुमार सिंह | ऑस्ट्रेलिया |
इक अनजाने देश में जब भी, मैं चुप हो रह जाता हूँ, |
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शस्य श्यामलां - डॉ सुनीता शर्मा | न्यूज़ीलैंड |
एक पत्थर फेंका गया मेरे घर में |
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फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद किशोर - घासीराम | Ghasiram |
घेर लई सब गली रंगीली, छाय रही छबि छटा छबीली, |
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यूँ तो मिलना-जुलना - प्रगीत कुँअर | ऑस्ट्रेलिया |
यूँ तो मिलना-जुलना चलता रहता है |
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टुकड़े-टुकड़े दिन बीता - मीनाकुमारी |
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श्यामा श्याम सलोनी सूरत को सिंगार बसंती है - घासीराम | Ghasiram |
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फागुन के दिन चार - मीराबाई | Meerabai |
फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥ |
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मुझे देखा ही नहीं - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड |
देखतीं है आँखें बहुत कुछ |
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सुजीवन - सियाराम शरण गुप्त | Siyaram Sharan Gupt |
हे जीवन स्वामी तुम हमको |
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रे रंग डारि दियो राधा पर - शिवदीन राम |
रे रंग डारि दियो राधा पर, प्यारा प्रेमी कृष्ण गोपाल। |
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बीता मेरे साथ जो अब तक | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया |
बीता मेरे साथ जो अब तक, वो बतलाने आई हूँ |
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आज ना जाने क्यों - डॉ पुष्पा भारद्वाज-वुड | न्यूज़ीलैंड |
आज ना जाने क्यों फिर से |
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आज की होली - ललितकुमारसिंह 'नटवर' |
अजी! आज होली है आओ सभी। |
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रंग की वो फुहार दे होली - गोविंद कुमार |
रंग की वो फुहार दे होली |
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अरी भागो री भागो री गोरी भागो - भारत दर्शन संकलन |
अरी भागो री भागो री गोरी भागो, |
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कल कहाँ थे कन्हाई - भारत दर्शन संकलन |
कल कहाँ थे कन्हाई हमें रात नींद न आई |
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प्रगीत कुँअर के मुक्तक - प्रगीत कुँअर | ऑस्ट्रेलिया |
वो समय कैसा कि जिसमें आज हो पर कल ना हो |
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होली व फाग के दोहे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
भर दीजे गर हो सके, जीवन अंदर रंग। |
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होली - मैथिलीशरण गुप्त - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt |
जो कुछ होनी थी, सब होली! |
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यूँ जीना आसान नहीं है | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया |
यूँ जीना आसान नहीं है,इस दुनिया के इस मेले में |
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राजनैतिक होली - डॉ एम.एल.गुप्ता आदित्य |
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खेलो रंग अबीर उड़ावो - होली कविता - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh |
खेलो रंग अबीर उड़ावो लाल गुलाल लगावो । |
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रंगो के त्यौहार में तुमने - राहुल देव |
रंगो के त्यौहार में तुमने क्यों पिचकारी उठाई है? |
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अजब हवा है - कृष्णा कुमारी |
अब की बार अरे ओ फागुन |
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आज कैसी वीर, होली? - क्षेमचन्द्र 'सुमन' |
है उषा की पुणय-वेला |
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वो मेरे घर नहीं आता - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi |
वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता |
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हरि संग खेलति हैं सब फाग - सूरदास के पद - सूरदास | Surdas |
हरि संग खेलति हैं सब फाग। |
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तुझसंग रंग लगाऊँ कैसे - प्रशांत कुमार पार्थ |
चढी है प्रीत की ऐसी लत |
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बरस-बरस पर आती होली - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali |
बरस-बरस पर आती होली, |
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आओ होली खेलें संग - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
कही गुब्बारे सिर पर फूटे |
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होली है आख़िर.. - राजेन्द्र प्रसाद |
होली है आख़िर मनाना पड़ेगा |
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होली पद - जुगलकिशोर मुख्तार |
ज्ञान-गुलाल पास नहिं, श्रद्धा-रंग न समता-रोली है । |
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गले मुझको लगा लो | ग़ज़ल - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | Bharatendu Harishchandra |
गले मुझको लगा लो ए दिलदार होली में |
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किस रंग खेलूँ अबके होली - विवेक जोशी |
लाल देश पे क़ुर्बान हुआ |
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मीरा के होली पद - मीराबाई | Meerabai |
फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥ |
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रसखान के फाग सवैय्ये - रसखान | Raskhan |
मिली खेलत फाग बढयो अनुराग सुराग सनी सुख की रमकै। |
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होली - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh |
मान अपना बचावो, सम्हलकर पाँव उठावो । |
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मुट्ठी भर रंग अम्बर में - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
मुट्ठी भर रंग अम्बर में किसने है दे मारा |
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मन में रहे उमंग तो समझो होली है | ग़ज़ल - गिरीश पंकज |
मन में रहे उमंग तो समझो होली है |
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प्यार भरी बोली | होली हास्य कविता - जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi |
होली पर हास्य-कवि जैमिनी हरियाणवी की कविता |
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जाम होठों से फिसलते - शांती स्वरुप मिश्र |
जाम होठों से फिसलते, देर नहीं लगती |
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तुम्हारे लिये | कुछ मुक्तक - अनूप भार्गव |
प्रणय की प्रेरणा तुम हो |
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मुस्कुराहट - डॉ दीपिका |
मुस्कुराहट सदैव बनाये रखना, |
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काव्य मंच पर होली - बृजेन्द्र उत्कर्ष |
काव्य मंच पर चढ़ी जो होली, कवि सारे हुरियाय गये, |
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होली आई - होली आई - हर्ष कुमार |
बहुत नाज़ था उसको खुद पर, नहीं आंच उसको आयेगी |
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होली की रात | Jaishankar Prasad Holi Night Poetry - जयशंकर प्रसाद | Jaishankar Prasad |
बरसते हो तारों के फूल |
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