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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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फाग खेलन बरसाने आये हैं, नटवर नंद किशोर - घासीराम | Ghasiram |
घेर लई सब गली रंगीली, छाय रही छबि छटा छबीली, |
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साजन! होली आई है! - फणीश्वरनाथ रेणु | Phanishwar Nath 'Renu' |
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एक भी आँसू न कर बेकार - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi |
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संत दादू दयाल के पद - संत दादू दयाल | Sant Dadu Dayal |
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हास्य दोहे | काका हाथरसी - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
अँग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज, |
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फागुन के दिन चार - मीराबाई | Meerabai |
फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥ |
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श्यामा श्याम सलोनी सूरत को सिंगार बसंती है - घासीराम | Ghasiram |
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मुक्तिबोध की कविता - गजानन माधव मुक्तिबोध | Gajanan Madhav Muktibodh |
मैं बना उन्माद री सखि, तू तरल अवसाद |
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ऋतु फागुन नियरानी हो - कबीरदास | Kabirdas |
ऋतु फागुन नियरानी हो, |
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मैं दिल्ली हूँ | चार - रामावतार त्यागी | Ramavtar Tyagi |
क्यों नाम पड़ा मेरा 'दिल्ली', यह तो कुछ याद न आता है । |
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आज की होली - ललितकुमारसिंह 'नटवर' |
अजी! आज होली है आओ सभी। |
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रंग की वो फुहार दे होली - गोविंद कुमार |
रंग की वो फुहार दे होली |
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अरी भागो री भागो री गोरी भागो - भारत दर्शन संकलन |
अरी भागो री भागो री गोरी भागो, |
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होली व फाग के दोहे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
भर दीजे गर हो सके, जीवन अंदर रंग। |
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कल कहाँ थे कन्हाई - भारत दर्शन संकलन |
कल कहाँ थे कन्हाई हमें रात नींद न आई |
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ज़माना रिश्वत का - यादराम शर्मा |
है पैसे का जोर, ज़माना रिश्वत का |
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हमारी सभ्यता - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt |
शैशव-दशा में देश प्राय: जिस समय सब व्याप्त थे, |
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श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया - मीराबाई | Meerabai |
श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया ।। टेर ।। |
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होरी खेलत हैं गिरधारी - मीराबाई | Meerabai |
होरी खेलत हैं गिरधारी। |
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राजनैतिक होली - डॉ एम.एल.गुप्ता आदित्य |
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रंगो के त्यौहार में तुमने - राहुल देव |
रंगो के त्यौहार में तुमने क्यों पिचकारी उठाई है? |
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अजब हवा है - कृष्णा कुमारी |
अब की बार अरे ओ फागुन |
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सूर के पद | Sur Ke Pad - सूरदास | Surdas |
सूरदास के पदों का संकलन - इस पृष्ठ के अंतर्गत सूर के पदों का संकलन यहाँ उपलब्ध करवाया जा रहा है। यदि आपके पास सूरदास से संबंधित सामग्री हैं तो कृपया 'भारत-दर्शन' के साथ साझा करें। |
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हरि संग खेलति हैं सब फाग - सूरदास के पद - सूरदास | Surdas |
हरि संग खेलति हैं सब फाग। |
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तुझसंग रंग लगाऊँ कैसे - प्रशांत कुमार पार्थ |
चढी है प्रीत की ऐसी लत |
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बरस-बरस पर आती होली - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali |
बरस-बरस पर आती होली, |
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गोपालदास नीरज के दोहे - गोपालदास ‘नीरज’ |
(1) |
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मीरा के पद - Meera Ke Pad - मीराबाई | Meerabai |
दरद न जाण्यां कोय |
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मीरा के होली पद - मीराबाई | Meerabai |
फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥ |
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रसखान के फाग सवैय्ये - रसखान | Raskhan |
मिली खेलत फाग बढयो अनुराग सुराग सनी सुख की रमकै। |
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मुट्ठी भर रंग अम्बर में - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
मुट्ठी भर रंग अम्बर में किसने है दे मारा |
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आओ होली खेलें संग - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
कही गुब्बारे सिर पर फूटे |
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खेलो रंग से | कविता - डॉ. श्याम सखा श्याम |
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क्यों दीन-नाथ मुझपै | ग़ज़ल - अज्ञात |
क्यों दीन-नाथ मुझपै, तुम्हारी दया नहीं । |
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जो कुछ है मेरे दिल में - अनिल कुमार 'अंदाज़' |
जो कुछ है मेरे दिल में वो सब जान जाएगा । |
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मन में रहे उमंग तो समझो होली है | ग़ज़ल - गिरीश पंकज |
मन में रहे उमंग तो समझो होली है |
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हर कोई है मस्ती का हकदार सखा होली में - डॉ. श्याम सखा श्याम |
हर कोई है मस्ती का हकदार सखा होली में |
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कभी पत्थर कभी कांटे कभी ये रातरानी है - डॉ. श्याम सखा श्याम |
कभी पत्थर कभी कांटे कभी ये रातरानी है |
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रंगों की मस्ती | गीत - अलका जैन |
उड़ने लगे हैं होली की मस्ती के गुब्बारे |
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प्यार भरी बोली | होली हास्य कविता - जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi |
होली पर हास्य-कवि जैमिनी हरियाणवी की कविता |
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द्रोणाचार्य | कविता - डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी |
तुम्हीं ने- |
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बलजीत सिंह की दो कविताएं - बलजीत सिंह |
बर्फ का पसीना
सर्द |
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घासीराम के पद - घासीराम | Ghasiram Ke Pad |
कान्हा पिचकारी मत मार मेरे घर सास लडेगी रे। |
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वसन्त आया - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' |
सखि, वसन्त आया । |
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ख़ून की होली जो खेली - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' |
रँग गये जैसे पलाश; |
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बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से - विजय कुमार सिंघल |
बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से |
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जंगल-जंगल ढूँढ रहा है | ग़ज़ल - विजय कुमार सिंघल |
जंगल-जंगल ढूँढ रहा है मृग अपनी कस्तूरी को |
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जो पुल बनाएँगें - अज्ञेय | Ajneya |
जो पुल बनाएँगें |
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काव्य मंच पर होली - बृजेन्द्र उत्कर्ष |
काव्य मंच पर चढ़ी जो होली, कवि सारे हुरियाय गये, |
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होली आई - होली आई - हर्ष कुमार |
बहुत नाज़ था उसको खुद पर, नहीं आंच उसको आयेगी |
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होली की रात | Jaishankar Prasad Holi Night Poetry - जयशंकर प्रसाद | Jaishankar Prasad |
बरसते हो तारों के फूल |
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परिंदे की बेज़ुबानी - डॉ शम्भुनाथ तिवारी |
बड़ी ग़मनाक दिल छूती परिंदे की कहानी है! |
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