कविताएं |
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देश-भक्ति की कविताएं पढ़ें। अंतरजाल पर हिंदी दोहे, कविता, ग़ज़ल, गीत क्षणिकाएं व अन्य हिंदी काव्य पढ़ें। इस पृष्ठ के अंतर्गत विभिन्न हिंदी कवियों का काव्य - कविता, गीत, दोहे, हिंदी ग़ज़ल, क्षणिकाएं, हाइकू व हास्य-काव्य पढ़ें। हिंदी कवियों का काव्य संकलन आपको भेंट!
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गति का कुसूर - अशोक चक्रधर | Ashok Chakradhar |
क्या होता है कार में पास की चीज़ें पीछे दौड़ जाती हैं तेज़ रफ़्तार में! ...
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अकबर और तुलसीदास - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi |
अकबर और तुलसीदास, दोनों ही प्रकट हुए एक समय, एक देश, कहता है इतिहास; ...
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झुकी कमान - चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri |
आए प्रचंड रिपु, शब्द सुना उन्हीं का, भेजी सभी जगह एक झुकी कमान। ज्यों युद्ध चिह्न समझे सब लोग धाये, त्यों साथ थी कह रही यह व्योम वाणी॥ "सुना नहीं क्या रणशंखनाद ? चलो पके खेत किसान! छोड़ो। पक्षी उन्हें खांय, तुम्हें पड़ा क्या? भाले भिड़ाओ, अब खड्ग खोलो। हवा इन्हें साफ़ किया करैगी,- लो शस्त्र, हो लाल न देश-छाती॥" ...
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चेतावनी - हरिकृष्ण प्रेमी |
है सरल आज़ाद होना, पर कठिन आज़ाद रहना। ...
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लक्ष्य-भेद - मनमोहन झा की |
बोलो बेटे अर्जुन! सामने क्या देखते हो तुम? संसद? सेक्रेटेरिएट? मंत्रालय? या मंच?? अर्जुन बोला तुरंत-- गुरुदेव! मुझे सिवा कुर्सी के कुछ भी नजर नहीं आता । पुलकित गुरु बोले द्रोण-- हे धनंजय! तुम मंत्री पद वरोगे काम कुछ भी नहीं करोगे/ फिर भी धन से घर भरोगे केवल कुर्सी के लिए जिओगे । और कुर्सी के लिए ही मरोगे । ...
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भारत माता - मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt |
(राष्ट्रीय गीत) ...
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हिंदुस्तान - मनमोहन झा की |
धूर्तों का नारा मूर्खों को चारा सारे जहां से अच्छा यह हिंदुस्तान हमारा । ...
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सयाना - गोलोक विहारी राय |
आदि काल से बस यूँ ही, चला आ रहा खेल। बनने और बनाने की, चलती रेलम पेल।। चलती रेलम पेल, दाँव जब जिसका चलता। कहते उसको बुद्धिमान, वही सभी को छलता।। कहे भोला भुलक्कड़, जिस पर हँसे जमाना। कोई मूरख कहता उसको, कहता कोई दीवाना।। ...
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कमल - मयंक गुप्ता |
दलदल के भीतर अपने अंशों को पिरोए हुए, शायद वंशावली की धरोहर को संजोए हुए, एक कमल दल तैरता रहता, कभी इस छोर-कभी उस छोर। नहीं था ज्ञान अपने होने का उसको, समझ बैठा कीचड़ को घर । ...
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तुम बेटी हो - राधा सक्सेना |
तुम मेरी बेटी जैसी हो, ये कहना बहुत आसान है इन शब्दों का लेकिन अब यहां, कौन रखता मान है! इसी एक झूठे भ्रम में खुश हो लेती है वो नादान है कहने में क्या, कहते तो सभी बेटी को वरदान है। कहने और करने में, फर्क बहुत बड़ा होता है बेटियों को भार न समझना मुश्किल जरा होता है। इस दुनिया में लोगों का, दिल कहां बड़ा होता है! भेड़िया इंसान के रूप में हर मोड़ पर खड़ा होता है। नन्ही सी जान के दुश्मन को कौन कहेगा इंसान है! गर्भ से लेकर जवानी तक उस पर लटक रही तलवार है प्यार बांटने वाली बेटी को क्यों नहीं मिलता प्यार है! उसकी हर एक बात पर उठते हर रोज यहां सवाल है न जाने कब जागेगी दुनिया सुनके उसकी चीख पुकार है। उसकी इस व्यथा वेदना का कब होगा स्थाई समाधान है! जो कोख में नहीं मरती वो हर रोज यहां मरती है अपने अरमानों के संग हरपल थोड़ा-थोड़ा बिखरती है। सुरक्षा की कसम खाके भी हम रक्षा नहीं कर पाते हैं उसके हक के लिए बस खोखले नारे ही लगाते हैं 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का चलता हर रोज अभियान है। ...
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वो मजदूर कहलाता है - राधा सक्सेना |
जो हमारे लिए घर बनाता है घर नहीं हमारे उस सपने को साकार करता है जिसे हम खुली आंखों से देखते हैं खुद झोपड़ी में बेफिक्र होकर सोता है, और कोई सपना नहीं देखता। ...
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एक बार फिर... - व्यग्र पाण्डे |
वो चला तो ठीक था लोग कहते थे इसमें शक्ति है/बुद्धि है और चातुर्य भी ये जीत जायेगा दौड़ अपनी, पर क्या हुआ ? गंतव्य से पहले ही शायद वो भटक गया उसकी सब विशेषताएं उड़ गई सूखे पत्तों की तरह या फिर भूल गया वो कि वह एक विशेष कार्य को निकला था वो अटक गया राह की चकाचौंध में और चटक गया उसका लक्ष्य शीशे की तरह... दौड़ का समय पूर्ण होने को है अबकी बार खरगोश सोया तो नहीं अति आत्मविश्वास में यहां वहां घूमता रहा लगता है एक बार फिर कछु आ जीत जायेगा दौड़ अपनी ... - व्यग्र पाण्डे कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी, स.मा.(राज.) 322201 ई-मेल: vishwambharvyagra@gmail.com ...
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दूब - मंजू रानी |
तुम ने कभी दूब को मरते देखा है वह सदा जीवित रहती है। अन्दर ही अन्दर अपनी जड़े फैलाती रहती है। अनुकूल वातावरण में सब को पीछे छोड़ सारी धरा पर छा जाती है। अपनी मिट्टी को अच्छे से जकड़े रहती है इसलिए हर मौसम सह जाती है। सूखने के बाद भी हरियाली धरा पर फैला देती है। ये दूब ही है जो हर तूफान सह जाती है। किसी भी रंग को हावी नहीं होने देती है इसलिए धरा को विपदाओं से बचाती रहती है। पर इंसा इस वहम में जीता है कि उसने उसे कूचल दिया है पर वह सदा जीवित रहती है पर वह सदा जीवित रहती है। ...
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चलो चलें - शशि द्विवेदी |
चलो चलें कुछ नया करें, नयी राह बना दें, नया चलन चला दें, कुछ कांटें निकाल दें, कुछ फूल बिछा दें।। ...
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रोहित ठाकुर की तीन कविताएं - रोहित ठाकुर |
चलता हुआ आदमी ...
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यह टूटा आदमी - शिव नारायण जौहरी 'विमल' |
कुंठा के कांधे पर उजड़ी मुस्कान धरे हर क्षण श्मशान के द्वार खड़ा आह भरे यह टूटा आदमी है भीड़ में अकेला बेचारा देख रहा तृष्णा का मेला। ...
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1857 - शिव नारायण जौहरी 'विमल' |
सत्तावन का युद्ध खून से लिखी गई कहानी थी वृद्ध युवा महिलाओं तक में आई नई जवानी थी आज़ादी के परवानों ने मर मिटने की ठानी थी ! क्रांति संदेशे बाँट रहे थे छदम वेश में वीर -जवान नीचे सब बारूद बिछी थी ऊपर हरा भरा उद्यान मई अंत में क्रांतिवीर को भूस में आग लगानी थी ! मंगल पांडे की बलि ने संयम का प्याला तोड़ दिया जगह-जगह चिंगारी फूटी तोपों का मुँह मोड़ दिया कलकत्ता से अंबाला तक फूटी नई जवानी थी ! मेरठ कानपुर में तांडव धू-धू जले फिरंगी घर नर-मुंडों से पटे रास्ते गूँजे 'जय भारत' के स्वर दिल्ली को लेने की अब इन रणवीरों ने ठानी थी ! तलवारों ने तोपें छीनी प्यादों ने घोड़ों की रास नंगे-भूखे भगे फिरंगी जंगल में छिपने की आस झाँसी में रणचंडी ने भी अपनी भृकुटी तानी थी ! काशी इलाहाबाद अयोध्या में रनभेरी गूँजी थी फर्रूखाबाद, इटावा तक में यह चिंगारी फूटी थी गंगा-यमुना लाल हो गई इतनी क्रुद्ध भवानी थी ! आज़ादी की जली मशालें नगर, गाँव, गलियारों में कलकत्ता से कानपुर तक गोली चली बाज़ारों में तांत्या, बाजीराव, कुंवर की धाक शत्रु ने मानी थी ! दिल्ली पर चढ़ गये बांकुरे शाह ज़फर सम्राट बने सच से होने लगे देश की आज़ादी के वे सपने अँग्रेज़ों को घर जाने की बस अब टिकिट कटानी थी ! लेकिन आख़िर वही हुआ सर पत्थर से टकराने का किंतु हार है मार्ग जीत को वरमाला पहनाने का बर्बरता को रौंध पैर से माँ की मुक्ति करानी थी ! आज़ादी का महासमर यह चला निरंतर नब्बे साल बदली युध नीतियाँ लेकिन हाथो में थी वही मशाल पंद्रह अगस्त को भारत ने लिखी नई कहानी थी आज़ादी की हुई घोषणा दुनिया ने सन्मानी थी ! - शिव नारायण जौहरी 'विमल' भोपाल (म. प्र.), भारत ई-मेल: madhupradh@gmail.com ...
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सपना - स्वरांगी साने |
खुली आँखों से सपना देखती सपने को टूटता देखती खुद को अकेला देखती ...
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पीहर - स्वरांगी साने |
कविता में जाना मेरे लिए पीहर जाने जैसा है। ...
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प्याज़ - स्वरांगी साने |
बहुत सारा प्याज़ काटने बैठ जाती थी माँ। कहती थी मसाला भूनना है। ...
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