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कथा-कहानी |
अंतरजाल पर हिंदी कहानियां व हिंदी साहित्य निशुल्क पढ़ें। कथा-कहानी के अंतर्गत यहां आप हिंदी कहानियां, कथाएं, लोक-कथाएं व लघु-कथाएं पढ़ पाएंगे। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद,रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मा व लियो टोल्स्टोय की कहानियां। |
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अर्जुन का संदेह - सुब्रह्मण्य भारती |
हस्तिनापुर मैं गुरु द्रोणाचार्य के पास पांडुपुत्र और दुर्योधन आदि विद्या अध्ययन कर रहे थे, तब की बात है। एक दिन संध्याकालीन बेला में वे लोग शुद्ध वायु का सेवन कर रहे थे तभी अर्जुन ने कर्ण से प्रश्न किया, "हे कर्ण! बताओ, युद्ध श्रैष्ठ है या शांति?" |
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जीवन-संध्या - लीलावती मुंशी |
दिन का पिछला पहर झुक रहा था। सूर्य की उग्र किरणों की गर्मी नरम पड़ने लगी थी, रास्ता चलने वालों की छायाएँ लंबी होती जा रही थीं। |
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महातीर्थ | कहानी - मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand |
मुंशी इंद्रमणि की आमदनी कम थी और खर्च ज्यादा। अपने बच्चे के लिए दाई का खर्च न उठा सकते थे। लेकिन एक तो बच्चे की सेवा-शुश्रूषा की फ़िक्र और दूसरे अपने बराबरवालों से हेठे बन कर रहने का अपमान इस खर्च को सहने पर मजबूर करता था। बच्चा दाई को बहुत चाहता था, हरदम उसके गले का हार बना रहता था। इसलिए दाई और भी जरूरी मालूम होती थी, पर शायद सबसे बड़ा कारण यह था कि वह मुरौवत के वश दाई को जवाब देने का साहस नहीं कर सकते थे। बुढ़िया उनके यहाँ तीन साल से नौकर थी। उसने उनके इकलौते लड़के का लालन-पालन किया था। अपना काम बड़ी मुस्तैदी और परिश्रम से करती थी। उसे निकालने का कोई बहाना नहीं था और व्यर्थ खुचड़ निकालना इंद्रमणि जैसे भले आदमी के स्वभाव के विरुद्ध था, पर सुखदा इस संबंध में अपने पति से सहमत न थी। उसे संदेह था कि दाई हमें लूटे लेती है। जब दाई बाजार से लौटती तो वह दालान में छिपी रहती कि देखूँ आटा कहीं छिपा कर तो नहीं रख देती; लकड़ी तो नहीं छिपा देती। उसकी लायी हुई चीजों को घंटों देखती, पूछताछ करती। बार-बार पूछती, इतना ही क्यों ? क्या भाव है। क्या इतना महँगा हो गया ? दाई कभी तो इन संदेहात्मक प्रश्नों का उत्तर नम्रतापूर्वक देती, किंतु जब कभी बहू जी ज्यादा तेज हो जातीं तो वह भी कड़ी पड़ जाती थी। शपथें खाती। सफाई की शहादतें पेश करती। वाद-विवाद में घंटों लग जाते थे। प्रायः नित्य यही दशा रहती थी और प्रतिदिन यह नाटक दाई के अश्रुपात के साथ समाप्त होता था। दाई का इतनी सख्तियाँ झेल कर पड़े रहना सुखदा के संदेह को और भी पुष्ट करता था। उसे कभी विश्वास नहीं होता था कि यह बुढ़िया केवल बच्चे के प्रेमवश पड़ी हुई है। वह बुढ़िया को इतनी बाल-प्रेम-शीला नहीं समझती थी। |
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सौदागर और कप्तान | सीख भरी कहानी - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' |
एक सौदागर समुद्री यात्रा कर रहा था, एक रोज उसने जहाज के कप्तान से पूछा, ''कैसी मौत से तुम्हारे बाप मरे?" |
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चार मित्र | लोक-कथा - मुरलीधर जगताप |
बहुत दिन पहले की बात है। एक छोटा-सा नगर था, पर उसमें रहने वाले लोग बड़े दिल वाले थे। ऐसे न्यारे नगर में चार मित्र रहते थे। वे छोटी उमर के थे, पर चारों में बड़ा मेल था। उनमें एक राजकुमार, दूसरा राजा के मंत्री का पुत्र, तीसरा साहूकार का लड़का और चौथा एक किसान का बेटा था। चारों साथ-साथ खाते-पीते और खेलते-घूमते थे। |
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हीरे का हीरा - चंद्रधर शर्मा गुलेरी | Chandradhar Sharma Guleri |
[ अधिकतर पाठक गुलेरी जी की तीन कहानियों से परिचित हैं जिनमें 'उसने कहा था', 'बुद्धू का काँटा' व 'सुखमय जीवन' सम्मिलित हैं लेकिन कहा जाता है कि 'हीरे का हीरा' कहानी चंद्रधर शर्मा गुलेरी की 'उसने कहा था' का अगला भाग है जिसमें 'लहनासिंह की वापसी दिखाई गई है। इस कहानी के मूल रचनाकार गुलेरीजी ही हैं इसपर भी प्रश्न उठे हैं लेकिन यह कहानी गुलेरीजी की ही कहानी के रूप में प्रकाशित हुई है यथा गुलेरी जयंती पर यह कहानी प्रकाशित की जा रही है। ] |
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देशभक्ति का पारितोषिक - प्रवीण जैन |
चोर एक घर में घुसा। उस समय वहाँ टेलीविज़न चल रहा था। टेलीविज़न पर राष्ट्रीय गान आरंभ हो गया। चोर सावधान की मुद्रा में वहीं सावधान खड़ा हो गया। गृहस्वामी ने उसे पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया। न्यायाधीश महोदय ने देशभक्ति के पारितोषिक स्वरूप चोर को इज्जत सहित बरी कर दिया और गृहस्वामी को राष्ट्रीय गान का अपमान करने पर सज़ा सुना दी। |
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ते ताही और बरसात - प्रीता व्यास |
बहुत पुरानी बात है। दादी की दादी की दादी से भी बहुत-बहुत पहले की। सफेद बादलों के देश में एक बार खूब बारिश हुई, खूब। इतनी की सब जल-थल हो गया । एक गांव (Kainga) था जिसमें बसने वालों ने कहना शुरू कर दिया कि यह बारिश ते ताही ही लेकर आई है। ते ताही ने अपने जादू से सारी धरती को डुबो देने जितनी बारिश करवाई है। |
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लायक बच्चे - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
अकेली माँ ने उन पांच बच्चों की परवरिश करके उन्हें लायक बनाया। पांचों अपने पाँवों पर खड़े थे। |
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अर्जुन या एकलव्य - रोहित कुमार हैप्पी |
'अर्जुन और एकलव्य' की कहानी सुनाकर मास्टर जी ने बच्चों से पूछा, "तुम अर्जुन बनोगे या एकलव्य?" |
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घमंड कब तक - अयोध्याप्रसाद गोयलीय |
"नानी, यह ऊँट इतना उछल-कूद क्यों रहा है?" |
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ऐसे थे रहीम - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
रहीम दान देते समय आँख उठाकर ऊपर नहीं देखते थे। याचक के रूप में आए लोगों को बिना देखे, वे दान देते थे। अकबर के दरबारी कवियों में महाकवि गंग प्रमुख थे। रहीम के तो वे विशेष प्रिय कवि थे। एक बार कवि गंग ने रहीम की प्रशंसा में एक छंद लिखा, जिसमें उनका योद्धा-रूप वर्णित था। इसपर प्रसन्न होकर रहीम ने कवि को छत्तीस लाख रुपए भेंट किए। |
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सृष्टि का खिलना - संजय भारद्वाज |
प्रात: घूमने निकला। दो-चार दिन एक दिशा में जाने के बाद, नवीनता की दृष्टि से भिन्न दिशा में जाता हूँ। आज निकट के जॉगर्स पार्क के साथ की सड़क से निकला। पार्क में व्यायाम के नए उपकरण लगे हैं। अनेक स्त्री-पुरुष व्यायाम कर रहे थे। उल्लेखनीय है कि व्यायाम करने वालों में स्त्रियों का प्रतिशत अच्छा था। देखा कि अधिकांश स्त्रियाँ, चाहे वे किसी भी आयु समूह की हों, व्यायाम से पहले या बाद में झूला अवश्य झूल रही थीं। |
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अमरनाथ की पौराणिक कथाएं - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
अमरनाथ धाम के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। सबसे लोकप्रिय कथा अमर कबूतर-कबूतरी की है। |
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ब्लू माउंटेनस | ऑस्ट्रेलियन लोक-कथा - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में अपने प्राकृतिक सौंदर्य से सभी को अभिभूत कर देने वाली 'ब्लू माउंटेनस' (Blue Mountains) के बारे में कहा जाता है कि कभी वे जीती-जागती तीन सुंदर युवतियां हुआ करती थीं । |
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भूकम्प - सुशांत सुप्रिय |
" समय के विराट् वितान में मनुष्य एक क्षुद्र इकाई है । " |
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