वही भाषा जीवित और जाग्रत रह सकती है जो जनता का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व कर सके। - पीर मुहम्मद मूनिस।

टूट गयी खटिया

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi

हे वोटर महाराज,
आप नहीं आये आखिर अपनी हरकत से बाज़

नोट हमारे दाब लिये और वोट नहीं डाला
दिखा नर्मदा घाट सौंप दी हाथों में माला

डूब गये आंसू में मेरे छप्पर और छानी
ऊपर से तुम दिखलाते हो चुल्लू भर पानी

मिले ना लड्डू लोकतंत्र के दाव गया खाली
सूख गई क़िस्मत की बगिया रूठ गया माली

बाप-कमाई साफ़ हो गई हाफ़ हुई काया
लोकतंत्र के स्वप्न महल का खिसक गया पाया

चाट गई सब चना चबैना ये चुनाव चकिया
गद्दी छीनी प्रतिद्वन्दी ने चमचों ने तकिया

चाय पानी और बोतलवाले करते हैं फेरे
बीस हज़ार, बीस खातों में चढे नाम मेरे

झंडा गया भाड़ में मेरा, हाय पड़ा महंगा
बच्चो ने चड्डी सिलवा ली, बीवी ने लहंगा

टूट गई रिश्वत की डोरी, डूब गई लुटिया
बिछने से पहले ही मेरी टूट गई खटिया

- शैल चतुर्वेदी
साभार - बाजार का ये हाल है
प्रकाशक: श्री हिन्दी संसार

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