समाज और राष्ट्र की भावनाओं को परिमार्जित करने वाला साहित्य ही सच्चा साहित्य है। - जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज'।

मीठी वाणी

 (बाल-साहित्य ) 
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रचनाकार:

 प्रभुद‌याल‌ श्रीवास्त‌व‌ | Prabhudyal Shrivastava

छत पर आकर बैठा कौवा,
कांव-कांव चिल्लाया|
मुन्नी को यह स्वर ना भाया,
पत्थर मार भगाया|
तभी वहां पर कोयल आई,
कुहू कुहू चिल्लाई|
उसकी प्यारी प्यारी बोली,
मुनिया के मन भाई|
मुन्नी बोली प्यारी कोयल,
रहो हमारे घर में|
शक्कर से भी ज्यादा मीठा,
स्वाद तुम्हारे स्वर में|
मीठी बोली वाणी वाले,
सबको सदा सुहाते|
कर्कश कड़े बोल वाले कब,
दुनिया को हैं भाते|

-प्रभुद‌याल‌ श्रीवास्त‌व‌
ई-मेल: pdayal_shrivastava@yahoo.com

 

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