भारतेंदु और द्विवेदी ने हिंदी की जड़ पाताल तक पहुँचा दी है; उसे उखाड़ने का जो दुस्साहस करेगा वह निश्चय ही भूकंपध्वस्त होगा।' - शिवपूजन सहाय।

हम आज भी तुम्हारे... (काव्य)

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Author: भारत भूषण

हम आज भी तुम्हारे तुम आज भी पराये,
सौ बार आँख रोई सौ बार याद आये ।
इतना ही याद है अब वह प्यार का ज़माना,
कुछ आँख छलछलाई कुछ ओंठ मुसकराये ।
मुसकान लुट गई है तुम सामने न आना,
डर है कि ज़िन्दगी से ये दर्द लुट न जाए ।

कैसे बने तुम्हारी तस्वीर रूप वाले,
तस्वीर खुद बने हैं जो रंग घोल लाए ।
हर बार सोचता हूँ इस बार देख लूंगा,
पर खो गई नज़र ही जब भी पलक उठाये ।
तुम इस तरह रमे हो हर साँस में हमारी,
छिपते नहीं छिपाए, दिखते नहीं दिखाए ।

बदनाम कर दिया है ऐसा गुनाह क्या था,
ले नाम सा तुम्हारा भर नींद मुसकराये ।
इस दर्द की कसम है तब तक न साँस लूंगा,
पत्थर नयन तुम्हारे जब तक न छलछलायें ।

हर घाव ने बुलाया, हर अश्रु ने बुलाया,
हर दर्द ने बुलाया, बे-दर्द तुम न आए ।
हम सा न दूसरा है इतने बड़े जहाँ में,
जब प्यार ने बुलाया, मन्दिर से भाग आए ।

- भारत भूषण

 

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