उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।

सुबह-सवेरे (काव्य)

Print this

Author: राजबीर देसवाल

किरणों की अंगड़ाई जैसे
पौ यूं फट फट आई जैसे
रात की चीं-चीं चुप्पी साधी
भोर भी यूं बौराई जैसे
पाखी शोर मचाने वाले
उनकी तो बन आई जैसे
हवा बहे हौले-हौले से
अभी नई हो आई जैसे
रात का यौवन भाया उसको
कली फूल बन आई जैसे
ओस की बूँदें मोती बनकर
तडके दूध-नहाई जैसे
रात के भारी कठिन पलों की
भोर में हुई रिहाई जैसे
जैसी मैंने आँखों देखीं
वैसी तुम्हे बताई जैसे

-राजबीर देसवाल

ई-मेल: rajbirdeswal@hotmail.com

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश