उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।

भावना चंद की तीन कविताएं (काव्य)

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Author: भावना चंद

उम्मीद


दिन भर की दौड़ धूप ...
के बाद....
जब ढूंढ़ती हूँ...
खुद को...
तो पाती हूँ ..
गलती का ढेर ....
कि ...देख मुझे निराश...
थपथपा देता हैं कोई पीठ...
कि देख पाई थी मै
वो थी उम्मीद...
हाँ ...हज़ार गलती पर भी...
मुस्कुराई थी तुम...
निरंतर / बेवजह...
इसी उम्मीद पर...
कि...कल कुछ बेहतर होगा..
गलती का ढेर होगा....

- भावना


#

उसके घर नही आता...
अख़बार..
बलात्कार,लूट और भ्रष्टाचार...
न दिखता है उसे ...
टेलीविजन का मोदी ...और..
स्वछ अभियान..
क्यूंकि...
टंगी रहती है ..
उसके झुके कन्धों पर..
बेरोज़गारी..
पेट को नोचती भूख..
उसकी खुरदरी हथेली भीगी रहती है...
बच्चों की...
टॉफी,शिक्षा,दूध में....
चबा जाती है उसकी पत्त्नी...
खीझ कर उसका हाथ...
कि...आज फिर खाली ...
चूल्हा/भात
और ...
बेच देती है ...
अपनी गलती हड्डी/सड़ता मांस

आज फिर हुई सिग्नल पर ...
बच्चों की संख्या 5 से 7

उसके घर आज भी नही आता अखबार...

- भावना


#


मुझे याद रह जाता है ...
हर एक वो क्षण जब तुम ....
अपनी मुस्कुराहट कही रख भूल जाते हो ...
और कह देते हो कुछ नहीं बस थकान है ...

मुझे मिल जाती है अक्सर वो ..
तुम्हरे टिफिन में ... ब्रीफकेस में / लेपटॉप में...
महीने की आखिरी जेब में ....

सुनो ..
हम मिलकर कर ...कर लेंगे घर के पूरे खर्चे ...
मैंने जोड़े है ..चंद रूपये ...पिछले महीने की ..
सब्ज़ी/राशन/घर खर्च से ....

तुमने दिए थे नई साड़ी/सूट/ श्रृंगार के लिए कुछ पैसे ...
मैंने रख छोड़े थे उन्हें ... अलमारी के कोने मैं ...

सुनो तुम बस मुस्कान ओढ़े रखा करो ....
क्यूंकि बच्चे और मैं खोजते है उसे ...
तुम्हारे दाढ़ी वाले चेहरे पर .....
चलो मुस्कुराओ ..


- भावना चंद

 

 

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