मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।

अजब हवा है (काव्य)

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Author: कृष्णा कुमारी

अब की बार अरे ओ फागुन
मन का आँगन रन-रंग जाना।

युगों -युगों से भीगी नहीं बसंती चोली
रही सदा -सदा ही सूनी -सूनी मेरी होली
पुलकन -सिहरन अंग-अंग भर जाना।

अजब हवा है, मन मौसम बहक उठे हैं
दावानल -सम अधर पलाशी दहक उठे हैं
बरसा कर रति-रंग, दंग कर जाना।

बरसों बाद प्रवासी प्रियतम घर आएंगे
मेरे विरही नयन लजाते शरमायेंगे
तू पलकों में मिलन भंग भर जाना ।

अब की बार अरे ओ फागुन
मन का आँगन रन-रंग जाना ।

- कृष्णा कुमारी

ई-मेल: krishna.kumari.kamsin9@gmail.com

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