उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।

ख़ूनी हस्ताक्षर (काव्य)

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Author: गोपाल प्रसाद व्यास

वह ख़ून कहो किस मतलब का, जिसमें उबाल का नाम नहीं
वह ख़ून कहो किस मतलब का, आ सके देश के काम नहीं
वह ख़ून कहो किस मतलब का, जिसमें जीवन न रवानी है
जो परवश होकर बहता है, वह ख़ून नहीं है, पानी है
उस दिन लोगों ने सही-सही, ख़ूँ की क़ीमत पहचानी थी
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में, मांगी उनसे क़ुर्बानी थी
बोले स्वतन्त्रता की ख़ातिर, बलिदान तुम्हें करना होगा
तुम बहुत जी चुके हो जग में, लेकिन आगे मरना होगा
आज़ादी के चरणों में, जो जयमाल चढ़ाई जाएगी
वह सुनो! तुम्हारे शीषों के फूलों से गूँथी जाएगी
आज़ादी का संग्राम कहीं, पैसे पर खेला जाता है
यह शीश कटाने का सौदा, नंगे सर झेला जाता है
आज़ादी का इतिहास, नहीं काली स्याही लिख पाती है
इसको लिखने के लिए, ख़ून की नदी बहाई जाती है
यूँ कहते-कहते वक्ता की, आँखों में ख़ून उतर आया
मुख रक्तवर्ण हो गया, दमक उठी उनकी स्वर्णिम काया
आजानु बाँहु ऊँची करके, वे बोले रक्त मुझे देना
उसके बदले में, भारत की आज़ादी तुम मुझसे लेना
हो गई सभा में उथल-पुथल, सीने में दिल न समाते थे
स्वर इंक़लाब के नारों के, कोसों तक छाए जाते थे
हम देंगे-देंगे ख़ून’- शब्द बस यही सुनाई देते थे
रण में जाने को युवक खड़े तैयार दिखाई देते थे
बोले सुभाष- इस तरह नहीं बातों से मतलब सरता है
लो यह काग़ज़, है कौन यहाँ आकर हस्ताक्षर करता है
इसको भरने वाले जन को, सर्वस्व समर्पण करना है
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन, माता को अर्पण करना है
पर यह साधारण पत्र नहीं, आज़ादी का परवाना है
इस पर तुमको अपने तन का, कुछ उज्ज्वल रक्त गिराना है
वह आगे आए, जिसके तन में ख़ून भारतीय बहता हो
वह आगे आए, जो अपने को हिन्दुस्तानी कहता हो
वह आगे आए, जो इस पर ख़ूनी हस्ताक्षर देता हो
मैं क़फ़न बढ़ाता हूँ; आए जो इसको हँसकर लेता हो
सारी जनता हुंकार उठी- हम आते हैं, हम आते हैं
माता के चरणों में यह लो, हम अपना रक्त चढ़ाते हैं
साहस से बढ़े युवक उस दिन, देखा बढ़ते ही आते थे
और चाकू, छुरी, कटारों से, वे अपना रक्त गिराते थे
फिर उसी रक्त की स्याही में, वे अपनी क़लम डुबोते थे
आज़ादी के परवाने पर, हस्ताक्षर करते जाते थे
उस दिन तारों ने देखा था, हिन्दुस्तानी विश्वास नया
जब लिखा था रणवीरों ने, ख़ूँ से अपना इतिहास नया

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