शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।

मैं न हारा | गीत (काव्य)

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Author: मन्जू लाल द्विवेदी शील

राह हारी मैं न हारा
थक गये पथ धूल के--
उड़ते हुए रज-कण घनेरे ।
पर न अब तक मिट सके हैं,
वायु में पदचिह्न मेरे।
जो प्रकृति के जन्म ही से ले चुके गति का सहारा।
राह हारी मैं न हारा

स्वप्न-मग्ना रात्रि सोई,
दिवस संध्या के किनारे।
थक गये वन-विहग, मृगतरु--
थके सूरज-चाँद तारे।
पर न अब तक थका मेरे लक्ष्य का ध्रुव ध्येय तारा।
राह हारी मैं न हारा।

- मन्जू लाल द्विवेदी 'शील'

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