शिक्षा के प्रसार के लिए नागरी लिपि का सर्वत्र प्रचार आवश्यक है। - शिवप्रसाद सितारेहिंद।
काव्य
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।

Articles Under this Category

माँ  - जगदीश व्योम

माँ कबीर की साखी जैसी
तुलसी की चौपाई-सी
माँ मीरा की पदावली-सी
माँ है ललित रुबाई-सी।
...

कबीर दोहे -2 - कबीरदास | Kabirdas

(21)
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥
...

अश़आर - मुन्नवर राना

माँ | मुन्नवर राना के अश़आर
...

हास्य दोहे | काका हाथरसी - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

अँग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज,
ऊपर से हैं इंडियन, भीतर से अँगरेज
...

काका हाथरसी का हास्य काव्य - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार
...

मेरा शीश नवा दो - गीतांजलि - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore

मेरा शीश नवा दो अपनी
चरण-धूल के तल में।
देव! डुबा दो अहंकार सब
मेरे आँसू-जल में।
...

ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है | ग़ज़ल - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi

ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है
समन्दरों ही के लहजे में बात करता है
...

अमिता शर्मा की क्षणिकाएं  - अमिता शर्मा

कवि

कवि तुम
कुम्हार हो क्या?
धरते रहते हो चाक पर
अपनी पराई पीड़ाएं
और गढ़ जाती हैं
कविताएं ।
...

सूर्यभानु गुप्त की तीन त्रिपदियाँ  - सूर्यभानु गुप्त

( 1)

पड़ा है रात का सपना अभी वहीं का
                                  वही
जिस आधी रात में, हमको मिली थी
                              आजादी
उस आधी रात की किस्मत में सहर है
                               कि नहीं।

(2)

कुर्सियाने के नये तौर निकल आते हैं
अब तो लगता है, किसी से न मरेगा
                                रावण,
एक सिर काटिए, सौ और निकल
                              आते हैं।

(3)

इंतजार और अभी दोस्तो करना होगा,
रामलीला जरा कलियुग में खिंचेगी
                                लंबी,
लेकिन यह तय है कि रावाग को तो
                          मरना होगा।

...

कबीर भजन - कबीरदास | Kabirdas

उमरिया धोखे में खोये दियो रे।
धोखे में खोये दियो रे।
पांच बरस का भोला-भाला
बीस में जवान भयो।
तीस बरस में माया के कारण,
देश विदेश गयो। उमर सब ....
चालिस बरस अन्त अब लागे, बाढ़ै मोह गयो।
धन धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो।।
बरस पचास कमर भई टेढ़ी, सोचत खाट परयो।
लड़का बहुरी बोलन लागे, बूढ़ा मर न गयो।।
बरस साठ-सत्तर के भीतर, केश सफेद भयो।
वात पित कफ घेर लियो है, नैनन निर बहो।
न हरि भक्ति न साधो की संगत,
न शुभ कर्म कियो।
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
चोला छुट गयो।।
...

कबीर दोहे -3  - कबीरदास | Kabirdas

(41)
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपणे, गोबिंद दियो मिलाय॥

(42)
गुरु कीजिए जानि के, पानी पीजै छानि ।
बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि॥

(43)
सतगुरू की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार॥

(44)
गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं ।
भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खाहि॥

(45)
शब्द गुरु का शब्द है, काया का गुरु काय।
भक्ति करै नित शब्द की, सत्गुरु यौं समुझाय॥

(46)
बलिहारी गुर आपणैं, द्यौंहाडी कै बार।
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार।।

(47)
कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर ॥

(48)
जो गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रान्ति न जिसका जाय।
सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाय॥

(49)
यह तन विषय की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान॥

(50)
गुरु लोभ शिष लालची, दोनों खेले दाँव।
दोनों बूड़े बापुरे, चढ़ि पाथर की नाँव॥


गुरू महिमा पर कबीर दोहे  (Kabir Dohe on Guru)
...

कबीर की हिंदी ग़ज़ल - कबीरदास | Kabirdas

क्या कबीर हिंदी के पहले ग़ज़लकार थे? यदि कबीर की निम्न रचना को देखें तो कबीर ने निसंदेह ग़ज़ल कहीं है:
...

कबीर वाणी  - कबीरदास | Kabirdas

माला फेरत जुग गया फिरा ना मन का फेर
कर का मनका छोड़ दे मन का मन का फेर
मन का मनका फेर ध्रुव ने फेरी माला
धरे चतुरभुज रूप मिला हरि मुरली वाला
कहते दास कबीर माला प्रलाद ने फेरी
धर नरसिंह का रूप बचाया अपना चेरो
...

कबीर के दोहे | Kabir's Couplets - कबीरदास | Kabirdas

कबीर के दोहे सर्वाधिक प्रसिद्ध व लोकप्रिय हैं। हम कबीर के अधिक से अधिक दोहों को संकलित करने हेतु प्रयासरत हैं।
...

कबीर की कुंडलियां - 1 - कबीरदास | Kabirdas

गुरु गोविन्द दोनों खड़े काके लागूं पांय
बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो दिखाय
गोविन्द दियो दिखाय ज्ञान का है भण्डारा
सत मारग पर पांव अपन गुरु ही ने डारा
गोबिन्द लियो बिठाय हिये खुद गुरु के चरनन
माथा दीन्हा टेक कियो कुल जीवन अर्पन
...

माँ कह एक कहानी - मैथिलीशरण गुप्त

"माँ कह एक कहानी।"
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?"
"कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?
माँ कह एक कहानी।"
...

माँ पर दोहे | मातृ-दिवस - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

जब तक माँ सिर पै रही बेटा रहा जवान।
उठ साया जब तै गया, लगा बुढ़ापा आन॥
...

फैशन | हास्य कविता - कवि चोंच

कोट, बूट, पतलून बिना सब शान हमारी जाती है,
हमने खाना सीखा बिस्कुट, रोटी नहीं सुहाती है ।
बिना घड़ी के जेब हमारी शोभा तनिक न पाती है,
नाक कटी है नकटाई से फिर भी लाज न आती है ।

...

नैराश्य गीत | हास्य कविता - कवि चोंच

कार लेकर क्या करूँगा?
तंग उनकी है गली वह, साइकिल भी जा न पाती ।
फिर भला मै कार को बेकार लेकर क्या करूँगा?

...

अभिमन्यु | क्षणिका - रमाशंकर सिंह

जब जब लड़ा अभिमन्यु
हर बार वही हारा है
अपनो ने नहीं दिया साथ
गैरों ने छल से मारा है

...

दो क्षणिकाएँ    - मंगलेश डबराल

शब्द
...

दो क्षणिकाएँ - नवल बीकानेरी

पाँव के नीचे से 
निकल गई 
एक छोटी सी कीड़ी,
बड़ी-सी बात कहकर 
कि
मारने वाले से 
बचाने वाला बड़ा है। 
...

दिन अँधेरा-मेघ झरते | रवीन्द्रनाथ ठाकुर - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore

यहाँ रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचना "मेघदूत' के आठवें पद का हिंदी भावानुवाद (अनुवादक केदारनाथ अग्रवाल) दे रहे हैं। देखने में आया है कि कुछ लोगो ने इसे केदारनाथ अग्रवाल की रचना के रूप में प्रकाशित किया है लेकिन केदारनाथ अग्रवाल जी ने स्वयं अपनी पुस्तक 'देश-देश की कविताएँ' के पृष्ठ 215 पर नीचे इस विषय में टिप्पणी दी है।
...

चल तू अकेला! | रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविता - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore

तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,
चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला!
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो चल तू अकेला,
जब सबके मुंह पे पाश..
ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,
हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाय!
तब भी तू दिल खोलके, अरे! जोश में आकर,
मनका गाना गूंज तू अकेला!
जब हर कोई वापस जाय..
ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय..
कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय...
...

तेरा हाल मुझसे - रोहित कुमार 'हैप्पी'

तेरा हाल मुझसे जो पूछा किसी ने
न मैं बोल पाया ना तू अब रही है

न घर-घर लगे है ना दिल ही थमे है
कि जिस रोज से माँ मेरी चल बसी है

अभी आ रही हैं तुम्हारी सदाएं
यहीं पर कहीं पर तू जैसे खड़ी है

न उसने बुलाया ना आवाज़ ही दी
पता तब चला घर में माँ ना रही है

-रोहित कुमार 'हैप्पी'

...

लोगे मोल? | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna

लोगे मोल?
लोगे मोल?
यहाँ नहीं लज्जा का योग
भीख माँगने का है रोग
पेट बेचते हैं हम लोग
लोगे मोल?
लोगे मोल?
...

माँ - मनीषा श्री

[कविता सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें]
...

भावना चंद की तीन कविताएं - भावना चंद

उम्मीद


दिन भर की दौड़ धूप ...
के बाद....
जब ढूंढ़ती हूँ...
खुद को...
तो पाती हूँ ..
गलती का ढेर ....
कि ...देख मुझे निराश...
थपथपा देता हैं कोई पीठ...
कि देख पाई थी मै
वो थी उम्मीद...
हाँ ...हज़ार गलती पर भी...
मुस्कुराई थी तुम...
निरंतर / बेवजह...
इसी उम्मीद पर...
कि...कल कुछ बेहतर होगा..
गलती का ढेर होगा....

...

आख़िर खुदकुशी करते हैं क्यों ? - रवि श्रीवास्तव

आख़िर खुदकुशी करते हैं क्यों ?
जिंदगी जीने से डरते हैं क्यों ?
फंदे पर लटककर झूले
जीवन है अनमोल ये भूले।
अपनों को देकर तो आंसू,
छोड़ दिए दुनिया में अकेले।
कभी ट्रेन के आगे आना,
कभी ज़हर को लेकर खाना।
कभी मॉल से छलांग लगा दी,
देते हैं वो खुद को आज़ादी।
इस आज़ादी के ख़ातिर वो,
अपनों को देते तकलीफ़
लोग हसंते ऐसी करतूतों पर,
करते नही हैं वो तारीफ़।
पिता के दिल का हाल ना पूछों,
माता पर गुजरी है क्या
इक छोटी सी कठिनाई के ख़ातिर,
क्यों कदम इतना बड़ा लिया उठा।
पुलिस आई है घर पर तेरे,
कर रही सबकों परेशान,
ख़ुद चला गया दुनिया से,
अपनों को किया परेशान।
संतुष्ठि मिल गई है तुमको
अपनी जान तो देकर के,
हाल बुरा है उनका देखो,
बड़ा किया जिसने पाल-पोसकर के।
जिंदगी की सच्चाई में क्यों?
इतना जल्दी हार गए।
आखिर मज़बूरी है क्या?
दुनिया के उस पार गए।
याद नही आई अपनों की,
करते हुए तो ऐसा काम,
क्या बीतेगी सोचते अगर,
नही देते इसकों अंजाम।
दुख का छाया, क्या है अकेले तुम पर
जो हो गए इतना मजबूर
औरों के दुख को भी देखो,
जख्म बन गए हैं नासूर।
हर समस्या का कभी तो,
समाधान भी निकलेगा।
ऊपर बैठा देख रहा जो,
उसका दिल भी पिघलेगा।
बुद्धदिली कहें इसे,
या कायरता कहकर पुकारें,
छोड़ रहे दुनिया को क्यों ?
और भी हैं जीने के सहारे।
कठिनाइयों से डरते हैं क्यों?
आख़िर खुदकुशी करते हैं क्यों ?
...

जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है | ग़ज़ल  - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा'

जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है
यह सवेरा भी क्या सवेरा है
...

बात हम मस्ती में ऐसी कह गए | ग़ज़ल - डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा'

बात हम मस्ती में ऐसी कह गए,
होश वाले भी ठगे से रह गए।
...

बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से - विजय कुमार सिंघल

बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से
इस दुनिया के लोग बना लेते हैं परबत राई से।
...

नानी वाली कथा-कहानी - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)

नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुई पुरानी।
बेटी-युग के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।
बेटी-युग में बेटा-बेटी,
सभी पढ़ेंगे, सभी बढ़ेंगे।
फौलादी ले नेक इरादे,
खुद अपना इतिहास गढ़ेंगे।
देश पढ़ेगा, देश बढ़ेगा, दौड़ेगी अब, तरुण जवानी।
नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुईं पुरानी।
बेटा शिक्षित, आधी शिक्षा,
दोनों शिक्षित पूरी शिक्षा।
हमने सोचा,मनन करो तुम,
सोचो समझो करो समीक्षा।
सारा जग शिक्षामय करना,हमने सोचा मन में ठानी।
नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुईं पुरानी।
अब कोई ना अनपढ़ होगा,
सबके हाथों पुस्तक होगी।
ज्ञान-गंग की पावन धारा,
सबके आँगन तक पहुँचेगी।
पुस्तक और कलम की शक्ति,जग जाहिर जानी पहचानी।
नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुईं पुरानी।
बेटी-युग सम्मान-पर्व है,
पुर्ण्य-पर्व है, ज्ञान-पर्व है।
सब सबका सम्मान करे तो,
जन-जन का उत्थान-पर्व है।
सोने की चिड़िया तब बोले,बेटी-युग की हवा सुहानी।
नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुई पुरानी।
बेटी-युग के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।

- आनन्द विश्वास
...

महाकवि रवीन्द्रनाथ के प्रति - केदारनाथ अग्रवाल | Kedarnath Agarwal

महाकवि रवीन्द्रनाथ के प्रति
...

आज भी खड़ी वो... - सपना सिंह ( सोनश्री )

निराला की कविता, 'तोड़ती पत्थर' को सपना सिंह (सोनश्री) आज के परिवेश में कुछ इस तरह से देखती हैं:
...

छवि नहीं बनती - सपना सिंह ( सोनश्री )

निराला पर सपना सिंह (सोनश्री) की कविता
...

तितली | बाल कविता - नर्मदाप्रसाद खरे

रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबके मन को भाते हैं।
कलियाँ देख तुम्हें खुश होतीं फूल देख मुसकाते हैं।।
...

नहीं है आदमी की अब | हज़ल - डॉ शम्भुनाथ तिवारी

नहीं है आदमी की अब कोई पहचान दिल्ली में
मिली है धूल में कितनों की ऊँची शान दिल्ली में

...

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश