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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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अँग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज, |
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काका हाथरसी का हास्य काव्य - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार |
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ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है | ग़ज़ल - वसीम बरेलवी | Waseem Barelvi |
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कबीर भजन - कबीरदास | Kabirdas |
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क्या कबीर हिंदी के पहले ग़ज़लकार थे? यदि कबीर की निम्न रचना को देखें तो कबीर ने निसंदेह ग़ज़ल कहीं है: |
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कबीर वाणी - कबीरदास | Kabirdas |
माला फेरत जुग गया फिरा ना मन का फेर |
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कबीर की कुंडलियां - 1 - कबीरदास | Kabirdas |
गुरु गोविन्द दोनों खड़े काके लागूं पांय |
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माँ कह एक कहानी - मैथिलीशरण गुप्त |
"माँ कह एक कहानी।" |
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माँ पर दोहे | मातृ-दिवस - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
जब तक माँ सिर पै रही बेटा रहा जवान। |
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फैशन | हास्य कविता - कवि चोंच |
कोट, बूट, पतलून बिना सब शान हमारी जाती है, |
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नैराश्य गीत | हास्य कविता - कवि चोंच |
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अभिमन्यु | क्षणिका - रमाशंकर सिंह |
जब जब लड़ा अभिमन्यु |
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दो क्षणिकाएँ - मंगलेश डबराल |
शब्द |
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दो क्षणिकाएँ - नवल बीकानेरी |
पाँव के नीचे से |
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दिन अँधेरा-मेघ झरते | रवीन्द्रनाथ ठाकुर - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
यहाँ रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचना "मेघदूत' के आठवें पद का हिंदी भावानुवाद (अनुवादक केदारनाथ अग्रवाल) दे रहे हैं। देखने में आया है कि कुछ लोगो ने इसे केदारनाथ अग्रवाल की रचना के रूप में प्रकाशित किया है लेकिन केदारनाथ अग्रवाल जी ने स्वयं अपनी पुस्तक 'देश-देश की कविताएँ' के पृष्ठ 215 पर नीचे इस विषय में टिप्पणी दी है। |
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चल तू अकेला! | रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविता - रबीन्द्रनाथ टैगोर | Rabindranath Tagore |
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला, |
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तेरा हाल मुझसे - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
तेरा हाल मुझसे जो पूछा किसी ने |
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लोगे मोल? | कविता - नागार्जुन | Nagarjuna |
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माँ - मनीषा श्री |
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भावना चंद की तीन कविताएं - भावना चंद |
उम्मीद
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बचकर रहना इस दुनिया के लोगों की परछाई से - विजय कुमार सिंघल |
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नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुई पुरानी। |
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निराला की कविता, 'तोड़ती पत्थर' को सपना सिंह (सोनश्री) आज के परिवेश में कुछ इस तरह से देखती हैं: |
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छवि नहीं बनती - सपना सिंह ( सोनश्री ) |
निराला पर सपना सिंह (सोनश्री) की कविता |
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तितली | बाल कविता - नर्मदाप्रसाद खरे |
रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबके मन को भाते हैं। |
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