मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
लघुकथाएं
लघु-कथा, *गागर में सागर* भर देने वाली विधा है। लघुकथा एक साथ लघु भी है, और कथा भी। यह न लघुता को छोड़ सकती है, न कथा को ही। संकलित लघुकथाएं पढ़िए -हिंदी लघुकथाएँप्रेमचंद की लघु-कथाएं भी पढ़ें।

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महामूर्ख | लघु कथा - अलोक मरावी

"अरे तिवारी जी, आपको पता है ...वो जो विश्वकर्मा जी है न ....वो जो P.W.D में काम करते हैं... " शर्मा जी बोले।
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इमतियाज गदर की दो लघुकथाएं  - इमतियाज गदर

अनेकता का फल

शिकारी, कबूतरों की एकता की ताकत को भांप चुका था। इस बार वह अपना जाल और शिकार दोनों नहीं खोना चाहता था इसलिए उसने इस बार कई जाल बनाए और उन्हें विभिन्न स्थानों में लगा दिया। साथ ही प्रत्येक जाल में अलग-अलग प्रकार के चारे का प्रयोग किया।
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मदर'स डे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

'आप 'मदर'स डे' को क्या करते हैं?'
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लायक बच्चे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

अकेली माँ ने उन पाँच बच्चों की परवरिश करके उन्हें लायक बनाया। पांचों अपने पाँवों पर खड़े थे।

उनको खड़ा करते-करते माँ बैठ गई थी पर उसे खड़ा करने को कोई नहीं था।  माँ ने एक आधा नालायक़ पैदा किया होता तो शायद आज साथ होता पर लायक बच्चे तो बहुत व्यस्त हो चुके थे।

रोहित कुमार 'हैप्पी'
न्यूज़ीलैंड।

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परिवार की लाड़ली | लघु-कथा - माधव नागदा

एक साथ तीन पीढ़ियां गांव के बस स्टेण्ड पर बस का इंतजार कर कही थीं| दादी,मां,पिता, बेटा और उसकी नई-नवेली बहू| बस स्टेण्ड हाइवे के किनारे था हालांकि यातायात की कमी नहीं थी लेकिन लोकल बसों की कमी थी| फलस्वरूप लोगों को घंटों इंतजार करना पड़ता था|
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मिट्टी और कुंभकार - नरेन्द्र ललवाणी | लघुकथा

बार-बार पैरों तले कुचले जाने के कारण मिट्टी अपने भाग्य पर रो पड़ी । अहो! मैं कैसी बदनसीबी हूँ कि सभी लोग मेरा अपमान करते हैं । कोई भी मुझे सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता जबकि मेरे ही भीतर से प्रस्फुटित होने वाले फूल का कितना सम्मान है । फूलों की माना पिरोकर गले में पहनी जाती है । भक्त लोग अपने उपास्य के चरणों में चढ़ाते हैं । वनिताएं अपने बालों में गूंथ कर गर्व का अनुभव करती हैं । क्या ही अच्छा हो कि मैं भी लोगों के मस्तिष्क पर चढ़ जाऊं!
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पारस पत्थर - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

'एक बहुत गरीब आदमी था। अचानक उसे कहीं से पारस-पत्थर मिल गया। बस फिर क्या था! वह किसी भी लोहे की वस्तु को छूकर सोना बना देता। देखते ही देखते वह बहुत धनवान बन गया।' बूढ़ी दादी माँ अक्सर 'पारस पत्थर' वाली कहानी सुनाया करती थी। वह कब का बचपन की दहलीज लांघ कर जवानी में प्रवेश कर चुका था किंतु जब-तब किसी न किसी से पूछता रहता, "आपने पारस पत्थर देखा है?"
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ईश्वर का चेहरा - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar

प्रभा जानती है कि धरती पर उसकी छुट्टी समाप्त हो गयी है। उसे दुख नहीं है। वह तो चाहती है कि जल्दी से जल्दी अपने असली घर जाए। उसी के वार्ड में एक मुस्लिम खातून भी उसी रोग से पीड़ित है। न जाने क्यों वह अक्सर प्रभा के पास आ बैठती है। सुख-दुख की बातें करती है। नई-नई पौष्टिक दवाइयां, फल तथा अण्डे आदि खाने की सलाह देती है। प्रभा सुनती है, मुस्करा देती है। सबीना बार-बार जोर देकर कहती है, ''ना बहन! मैंने सुना है यह दवा खाने से बहुत फायदा होता है और अमुक चीज खाने से तो तुम्हारे से खराब हालत वाले मरीज भी खुदा के घर से लौट आए हैं।''
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अन्तर दो यात्राओं का  - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar

अचानक देखता हूँ कि मेरी एक्सप्रेस गाड़ी जहाँ नहीं रुकनी थी वहाँ रुक गयी है। उधर से आने वाली मेल देर से चल रही है। उसे जाने देना होगा। कुछ ही देर बाद वह गाड़ी धड़ाधड़ दौड़ती हुई आयी और निकलती चली गयी लेकिन उसी अवधि में प्लेटफार्म के उस ओर आतंक और हताशा का सम्मिलित स्वर उठा। कुछ लोग इधर-उधर भागे फिर कोई बच्चा बिलख-बिलख कर रोने लगा।
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पहचान | लघु-कथा - कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar'

'मैं अपना काम ठीक-ठाक करुंगा और उसका पूरा-पूरा फल पाऊंगा!'  यह एक ने कहा।
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जैसी करनी वैसी भरनी | बोध -कथा - कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar'

एक हवेली के तीन हिस्सों में तीन परिवार रहते थे। एक तरफ कुन्दनलाल, बीच में रहमानी, दूसरी तरफ जसवन्त सिंह।
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ग़नीमत हुई | बोध -कथा - कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar'

राधारमण हिंदी के यशस्वी लेखक हैं। पत्रों में उनके लेख सम्मान पाते हैं और सम्मेलनों में उनकी रचनाओं पर चर्चा चलती है। रात उनके घर चोरी हो गई। न जाने चोर कब घुसा और उनका एक ट्रंक उठा ले गया - शायद जाग हो गई और उसे बीच में ही भागना पड़ा।
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करामात - सआदत हसन मंटो | Saadat Hasan Manto

लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।
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