जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है | ग़ज़ल

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा'

जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है
यह सवेरा भी क्या सवेरा है

हम उजाले की आस रखते थे
अब अँधेरा अधिक घनेरा है

दैन्य, दुख, दर्द, शोक कुंठाएं
इन सभी ने मनुज को घेरा है

तेरे मेरे का यह विवाद है क्या
कुछ न तेरा यहाँ न मेरा है

उनका आना और आके चल देना
जोगियों की तरह का फेरा है

कोई गुज़रा है चाँद सा जिसने
पथ में आलोक सा बिखेरा है

बच के जाएं तो हम कहाँ 'राणा'
हम को सौ मुश्किलों ने घेरा है

- डा. राणा प्रताप गन्नौरी 'राणा'

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश