उर्दू जबान ब्रजभाषा से निकली है। - मुहम्मद हुसैन 'आजाद'।
विविध
विविध, Hindi Miscellaneous

Articles Under this Category

देश पर मिटने वाले शहीदों की याद में - संपादक, भारत-दर्शन

स्वतंत्रता-दिवस के अवसर पर आप सभी को शुभ-कामनाएं।
...

न्यूज़ीलैंड की भारतीय पत्रकारिता - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

Bharat-Darshan 1996
...

आत्मकथ्य : बालेश्वर अग्रवाल - बालेश्वर अग्रवाल

जीवन के नब्बे वर्ष पूरे हो रहे हैं आज जब मैं यह सोच रहा हूँ, तो ध्यान में राष्ट्रकवि स्व. श्री माखन लाल चतुर्वेदी की प्रसिद्ध कविता 'पुष्प की अभिलाषा' की पक्तियां याद आ रही है।
...

एक गाँव ऐसा भी… - डॉ सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ 

हमारा गाँव बहुत बड़ा है। दस हजार की आबादी है। सड़क, बिजली, पानी सब कुछ है। मंदिर-मस्जिद और पुस्तकालय भी है। लोगों को मंदिर-मस्जिद और मोबाइल से फुर्सत नहीं मिलती इसलिए पुस्तकालय पर ताला पड़ा रहता है। सरकारी अस्पताल है, किंतु वहाँ जाने वालों को बड़ी हीन दृष्टि से देखा जाता है। सच कहें तो अस्पताल खुद भी हीन स्थिति में है। डाक्साहब शहर से कभी आते नहीं इसलिए गाँव के सारे मरीज शहर जाते हैं। कहने को तो गाँव में सह-शिक्षा वाला सरकारी स्कूल भी है, लेकिन वहाँ विद्यार्थी नहीं दिखाई देते। जहाँ सरपंच की भैंस और मास्साब की तनख्वाह, दोनों बंधी-बंधाई है। भैंस दूध देती है, मास्साब शिक्षा व्यवस्था को दूह लेते हैं। बाकी विद्यार्थियों का क्या है, उनके लिए हैं ना भोले गांव की छाती पर गाढ़ दिया गया ‘अलां-फलां कान्वेन्ट’ स्कूल। सारे बच्चों की वैचारिक नस्ल वहाँ बदली जा रही है। बच्चे वहाँ पढ़कर अपने माँ-बाप को गंवारू समझना सीख रहे हैं और वहीं माँ-बाप जमीन बेचकर मोटी फीस भरते हुए अपने बच्चों को समझदार होना मान रहे हैं। कमाल की उलटबासी है। गाँव में हाथ से ज्यादा फोन हैं, पैरों से ज्यादा चहलकदमी। दरअसल, गाँव स्मार्ट हो चला है। 
...

सुनाएँ ग़म की किसे कहानी - अशफ़ाक़उल्ला ख़ाँ

सुनाएँ ग़म की किसे कहानी हमें तो अपने सता रहे हैं।
हमेशा सुबहो-शाम दिल पर सितम के खंजर चला रहे हैं।।
...

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश